मनोबल, मेहनत व मनोयोग की महता: डा.
शीशपाल हरडू
जब भी कोई कार्य शुरू किया जाता है तो उस कार्य
की सफलतापूर्वक सम्पनता इस बात पर निर्भर करती है की उस कार्य को क्यों व किसके
द्वारा किया जा रहा है ? अगर वह कार्य लालच, भय, दवाब, मज़बूरी या दिखावेमात्र के
लिए कर रहे है तो सफलता संदिग्ध होगी और भाग्यवश सफलता मिल भी जाये तो उसका मूल्य
पोना ही रहेगा और अगर वही कार्य स्वेच्छा, लग्न, तन्मयता से किया जाये तो सफलता का
मूल्य व उपस्थिति दोनों बढ़ जाएगी I हम किसी व्यक्ति की समय, स्थान विशेष पर
उपस्थिति तो खरीद सकते है मगर मनोबल, उत्साह और अभिप्रेरणा नहीं खरीद सकते, बल्कि
ये उसमे पैदा करने पड़ेंगे I
हम सब
कार्य करते है, श्रेष्ठ कार्य करते है या सर्वश्रेष्ठ कार्य करते है ये हमारे
आंतरिक भाव व सोच पर निर्भर करता है I कार्य इच्छा या मज़बूरी से भी किया जा सकता
है , श्रेष्ठ कार्य में इच्छा, जरूरत व लालच का मिश्रण रहता है जबकि सर्वश्रेष्ठ
कार्य में लालसा, लग्न व नम्रता से मनोयोगपूर्ण प्रयास रहता है I जब तक किसी कार्य के प्रति लालसा जागृत नहीं
होगी, तब तक आपके प्रयास में संजीदगी व
तत्परता नहीं आ सकती I उस लालसा को संतुष्ट करने हेतु त्याग को तत्पर यानि
कर्म करना होगा तथा कर्म करने के लिए लग्न जरूरी है, आपको साधन जुटाने होगे ,
साधनों को इस दिशा में लगाना होगा तभी आप इच्छित लालसा को परिपूर्ण करने योग्य बन
पायेगे I कुछ पाने या सिखने के लिए आपको याचक बनना पड़ता है और नम्र रह कर पाना
होता है I
कहा जाता है की कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है
और यह सौ फीसदी सच भी है I हमारी लालसा असीमित रहती है और उनको पूरा करने हेतु
साधन सिमित रहते है अत: ज्यादा महत्वपूर्ण लालसा की पूर्ति हेतु साधनों को लगाते
है और कम महत्वपूर्ण को कल के लिए छोड़ देते है I इस प्रकार हम एक तरफ हमारे साधनों
का त्याग कर रहे है और दूसरी तरफ लालसा का भी त्याग कर रहे है I इसलिए हमें पाने
और खोने में संतुलन कायम रखना होगा और जो पाना है उस दिशा में तमाम साधन, प्रयास व
प्रयत्न लगा देने चाहिए ताकि असफलता की गुंजाइश कम से कम हो सके I हमें करने में
सावधान और होने में प्रसन्न रहना चाहिए, अगर करने में कोताही करेंगे तो सफलता
मिलेगी वो सस्ती होगी , वहीँ असफलता मिलने पर मलाल रहेगा की काश थोड़ा प्रयास और कर
लिया जाता तथा ये मलाल मिटता नहीं बल्कि हमसफर की सफलता देख कर और ज्यादा कचोटता
है I
कहा यह भी जाता है की सफलता अपना मूल्य मांगती है
और वो मूल्य पसीने के रूप में मांगती है I जब हम मेहनत के दम पर प्रयास करते है तो
हमारा मनोबल ऊँचा रहता है व सफलता की दर को बढ़ा देता है I भाग्य के भरोसे कायर व
आलसी बेठता है, जीतता वही है जो पुरे मनोयोग से लड़ता है I मेहनत व मनोबल का कोई
पर्याय नहीं हो सकता और जो इस मार्ग पर चलता है उसके लिए मंजिल मुश्किल नहीं होती
I जो संयोग में यकीन करते है उनकी जिन्दगी में संदिग्धता बनी रहती है व सफलता मेहमान
I सफलता को स्थाई और सहयोगी बनाने के लिए आपको अपनी तरकश में मेहनत, मनोबल व
मनोयोग रूपी तीर रखने ही होंगे I जब आप मेहनत व मनोबल पर सवार होकर मंज़िल को और
बढोगे तो परिस्थितियाँ स्वत: आपके पक्ष में होती जाएगी और आपका होंसला सातवें
आसमान पर रहेगा I
युद्ध व प्रतियोगिता में भाग्य गौण होता है ,
कर्म, क्रिया, प्रयास, प्रयत्न व मनोबल
आवश्यक और परिणाम का आधार होता है I कर्म कभी निष्फल नहीं जाता, क्रिया कर्म का
प्रभाव बढाती है वहीँ प्रयास व प्रयत्न दिशा व दशा तय करते है और मनोबल
मंजिल का राह आसान तो ही बनाती है , सुलभ व स्थायी भी बनाती है I इसलिए मनोयोग व
मनोबल से किया कर्म सार्थक परिणाम देता है और परिस्थितियों का विजेता बनाता है I
आज युवावर्ग को अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, स्पर्धा से दो-चार होना
होता है ऐसे में अवसाद और हीनता से बचने हेतु महापुरुषों की जीवनी व चरित्र पढ़ कर,
योग्य व सद्चरित्र लोगो का संग करके, सात्विक भोजन करके, संयमित जीवनचर्या बना
कर मनोबल को कमजोर न पड़ने दे और प्रत्येक
कार्य को पुरी शिद्दत, ईमानदारी, मेहनत, लग्न, मनोयोग से करते हुए उच्च मनोबल के
साथ सफलता का वर्ण करें और अपना जीवन सफल, सरल व सहज बनाये I
05/03/2015
No comments:
Post a Comment