Thursday, 19 March 2015

घर को घर बनाये, मकान नहीं –डा. शीशपाल हरडू

घर को घर बनाये, मकान नहीं –डा. शीशपाल हरडू
जहाँ हम रहते है उसे हम मकान कहें या घर, इस विषय पर गंभीर चिंतनमनन  करें तो इनमें अंतर स्वत: ही स्पष्ट हो जाता है I घर यानि अपना पैतृक या आवासीय निवास स्थान और मकान यानि ईट पत्थर आदि से बना निवास स्थान I आमतौर पर हम कहते है की हम अपने घर में रहते है या फिर हमनें किराये पर मकान ले रखा है तो इससे स्पष्ट होता है की घर का मतलब निज का अपना, यानि जिससे हमारा आत्मीय भाव जुड़ा हो और मकान का मतलब दुसरे का आवास, भवन या इमारत I घर का संम्बंध संस्कारों से, मान-मर्यादा से, रहन-सहन से और कुटुम्ब परिवार से जुड़ा होता है तथा इसके साथ हमारा आत्मिय व हर्दिकभाव जुड़ा होता है, इसकी महता व सार्थकता अपनी निज की रिहायश  अतार्थ घरनी से है तभी को करते है “बिन घरनी घर भूत का डेरा I जबकि मकान का संम्बंध ईट, पत्थर, रेत, गारे या सीमेंट से बने ढांचे से है जहाँ रिहायश नहीं हुई हो अब तक अतार्थ वो मकान जहाँ रिहायश हो जाये व आत्मीयता जुड़ जाये घर बन जाता है I
मकान को आवश्यक होने पर मकान मालिक खुद मजदुर लगवाकर या मशीनों से तुड़वा सकता है जबकि घर को उसके सदस्यों की फूट ही तोड़ती है उसका मालिक कभी नहीं I हम अपने बच्चों या नाते रिश्तेदार को यही कहते है की चलों घर चले या घर जाइये, यह कोई नहीं कहता की मकान जाइये क्योंकि घर से प्रेम, लगाव व अपनापन जुड़ा होता है I भाषा में भी मकान की तुलना में घर को ज्यादा महत्व दिया है और अनेको मुहावरे व लोकोक्तियाँ घर पर बनी है न की मकान पर I सामान्य बोल-चल में भी घर का प्रयोग ज्यादा होता है मकान की बनिस्पत जैसे शतरंज में 64 घर होते है मकान नहीं I इसलिए स्पष्ट है की जहाँ हम अपने परिवार के साथ अपनेपन से रहते है वह घर होता है I
घर से हम भावनात्मक रूप से जुड़े होते है इसीलिए हमारे परिवार का सम्बोधन घर से होता है और उसकी विशेषता घराना प्रकट करता है I एक छत के नीचे रहने वाली एक इकाई जो परिवार के रूप में रहते है उसके आत्मीय निवास को घर कहते है जहाँ सब सहकार, सरोकार व सहयोग से एक कर्ता के नेतृत्व में टीम भावना से वास करते हुए रहते है  और उनका आंकलन व्यक्तिगत न होकर घर या घराना के रूप में होता है I आप क्या है ? क्या करते है ? व्यवहार कैसा है ? इससे आपका घराना तय होता है उसकी पहचान तय होती है और समाज में मूल्य या महत्व तय होता है I इसलिए हमें अपने घर परिवार की मान-मर्यादा, नाम, ख्याति और परम्परा को ध्यान में रख कर ही अपना चल-चलन, चरित्र, आचरण व व्यवहार करना चाहिए कयोंकि व्यक्ति का व्यवहार उसके घर व खानदान का आइना होता है और आइना कभी झूठ नहीं बोलता I
इसलिए हमें अपने अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ मिलकर अपने घर को सिर्फ घर ही नहीं बल्कि श्रेष्ठ व सुंदर घर बनाना चाहिए और इसके लिए हमें अपने व्यवहार में निम्नलिखित बातों को अपनी जीवनचर्या का अंग बनाना होगा :
1.       सभी आपस में प्रेम, प्यार, सहचार व सहयोग से रहे, आपसी मनमुटाव को न पनपने से , संदेह व शंका का तुरंत खुले मन से समाधान निकाले, बड़ों का आदर व सम्मान करें तथा छोटों को संस्कार व प्यार दे I
2.       बुजुर्ग, रोगी, आतुर व जरूरतमंद की सेवा व सहयोग करें तथा अतिथि, साधु संत को निर्दोष भोजन दें व सेवा सत्कार करें I
3.       घर की बात घर में रखें, भूल व गलती को अनावश्यक तूल न दें, चोरी व छिपाव  व चुगली निंदा से बचें तथा सबसे समतायुक्त व्यवहार करें I
4.    अविश्वासी व दुर्जन व्यक्ति से दुरी रखें, सज्जन की संगत करे, सामाजिक बातों व रीति-रिवाजों का पालन करे I   
5.    जहाँ तक हो सके सब सदस्य एक साथ मिलकर भोजन ले, पारिवारिक व सामाजिक समस्या पर सामूहिक चिन्तन व विचार करते हुए समाधन निकालने का प्रयास करें, बड़ों की बात व भावना का सम्मान करें, सर्व हित पर निज हित को हावी न होने दें, पक्षपातपूर्ण कार्य न करें I
6.    सब में मित्रवत भाव रखे तथा नशे, कुविचार, कुसंगत से बचें; चरित्र व स्वास्थ्य को ऊँचा रखें I

19/03/2015 

No comments:

Post a Comment