Wednesday, 7 January 2015

जाट इतिहास –उद्दगम और विकास अवधारना

जाट इतिहास –उद्दगम और विकास अवधारना
जाट जाति के उद्दगम या मूल उत्पत्ति के विषय में विभिन्न इतिहासकारों के मत अलग अलग है परन्तु इस बात पर सभी इतिहासकार एक मत है की जाट समुदाय अति प्राचीन और आदिकालीन क्षत्रिय समाज है ,इसने अपनी सामाजिक परम्पराए,रीतिरिवाज निर्धारित किए हुए है जो क्षेत्र विशेष में अंशमात्र परिवर्तन के साथ मापदंड के रूप में मानते व निभाते है I जाट जाति में लगभग 3000 गोत्र है और इसमें गोत्र व खांप व्यवस्था का पूरा मान सम्मान के साथ पालन होता है ,एक गोत्र के लोग आपस में भाई मानते है तथा ये अपनी वंश परम्परा का पूरा पालन करते है अत: इस क्षत्रिय जाट जाति के  इतिहास और उत्पत्ति बारे विभिन्न इतिहासकारों और विद्वानो द्वारा किए अध्ययन और सिद्धान्त को निम्नलिखित तथ्यों से समझा जा सकता है :  
1.       कुछ इतिहासकार जाट उत्पत्ति का स्त्रोत महाभारत काल में राजसूय यज्ञ करने के कारण तो कुछ महाभारत युद्ध में विजय के कारण श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को ज्येष्ठ कह कर पुकारने और उनके वंशज /सन्तान  ज्येष्ठ से जेठर फिर जेटर और फिर जाट कहलाने लगे
2.       अलबरुनी श्रीकृष्ण को जाट मानते हैं. (अलबिरुनी, भारत, पृ. 176). वैसे युधिष्ठिर और कृष्ण दोनों के वंशज चंद्रवंशी क्षेत्रीय में सम्मिलित हैं. कृष्ण के वंशज जो कृष्णिया या कासनिया कहलाते हैं वर्तमान में जाटों के एक गोत्र के रूप में मौजूद हैं. या कासनिया कहलाते हैं वर्तमान में जाटों के एक गोत्र के रूप में मौजूद हैं
3.       एक अन्य पौराणिक मान्यता अनुसार शिव की जटाओं से जाट की उत्पत्ति मानी जाती है हालांकि इसको इतिहास या विज्ञान की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता परन्तु यह सिद्धान्त  देव संहिता में उल्लेखित है की शिव के ससुर ने अपने यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया मगर महादेव और सती को नहीं बुलाया परन्तु सती बिना बुलाये ही अपने पिता के यज्ञ में गई और वहां  
4.       शिव के लिये कोई स्थान निर्धारित नहीं था, न उनके पति का भाग निकाला गया और न ही सती का सत्कार किया गया. उलटे शिवजी का अपमान किया गया I अपने पति का अपमान देखकर  सती ने यज्ञ-कुण्ड में छलांग लगा कर अपने प्राण दे दिये इससे शिव ने क्रुद्ध होकर अपनी  जट्टा से वीरभद्र  नामक गण को उत्पन्न किया I वीरभद्र ने जाकर यज्ञ को भंग कर दिया और  दक्ष का सिर काट दिया I ब्रह्मा और विष्णु शिव को मनाने उनके पास गये और शिव से कहा कि आप भी हमारे बराबर हैं I इस समझौते के बाद शिव और उसके गण जाटों को बराबर का दर्जा मिला और शिव ने दक्ष का सिर जोड दिया I कहते हैं कि दक्ष को बकरे का सिर जोडा गया था और  यह भी धारणा है कि ब्राह्मण इसी अपमान के कारण जाटों का इतिहास नहीं बताते या इतिहास तोड़-मरोड़ कर लिखते है देवसंहिता के कुछ श्लोक निम्न प्रकार हैं-    पार्वत्युवाचः
भगवन सर्व भूतेश सर्व धर्म विदाम्बरः । कृपया कथ्यतां नाथ जाटानां जन्म कर्मजम् ।।12।।
अर्थ- हे भगवन! हे भूतेश! हे सर्व धर्म विशारदों में श्रेष्ठ! हे स्वामिन! आप कृपा करके मेरे तईं जाट जाति का जन्म एवं कर्म कथन कीजिये ।।12।।
 का च माता पिता ह्वेषां का जाति बद किकुलं । कस्तिन काले शुभे जाता प्रश्नानेतान बद प्रभो ।।13।।
 अर्थ- हे शंकरजी ! इनकी माता कौन है, पिता कौन है, जाति कौन है, किस काल में इनका जन्म हुआ है ? ।। 13।।
श्री महादेव उवाच:
श्रृणु देवि जगद्वन्दे सत्यं सत्यं वदामिते । जटानां जन्मकर्माणि यन्न पूर्व प्रकाशितं ।।14।।
अर्थ- महादेवजी पार्वती का अभिप्राय जानकर बोले कि जगन्माता भगवती ! जाट जाति का जन्म कर्म मैं तुम्हारी ताईं सत्य-सत्य कथन करता हूँ कि जो आज पर्यंत किसी ने न श्रवण किया है और न कथन किया है ।।14।।
महाबला महावीर्या, महासत्य पराक्रमाः । सर्वाग्रे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़-व्रता: || 15 ||
अर्थ- शिवजी बोले कि जाट महाबली हैं, महा वीर्यवान और बड़े पराक्रमी हैं क्षत्रिय प्रभृति क्षितिपालों के पूर्व काल में यह जाति ही पृथ्वी पर राजे-महाराजे रहीं । जाट जाति देव- जाति से श्रेष्ठ है, और दृढ़-प्रतिज्ञा वाले हैं || 15 ||
 श्रृष्टेरादौ महामाये वीर भद्रस्य शक्तित: । कन्यानां दक्षस्य गर्भे जाता जट्टा महेश्वरी || 16 ||
 अर्थ- शंकरजी बोले हे भगवती ! सृष्टि के आदि में वीरभद्रजी की योगमाया के प्रभाव से उत्पन्न जो पुरूष उनके द्वारा और ब्रह्मपुत्र दक्ष महाराज की कन्या गणी से जाट जाति उत्पन्न होती भई, सो आगे स्पष्ट होवेगा || 16 ||
गर्व खर्चोत्र विग्राणां देवानां च महेश्वरी । विचित्रं विस्मयं सत्वं पौराण कै साङ्गीपितं || 17 ||
अर्थ- शंकरजी बोले हे देवि ! जाट जाति की उत्पत्ति का जो इतिहास है सो अत्यन्त आश्चर्यमय है । इस इतिहास में विप्र जाति एवं देव जाति का गर्व खर्च होता है । इस कारण इतिहास वर्णनकर्ता कविगणों ने जाट जाति के इतिहास को प्रकाश नहीं किया है || 17 ||
उपरोक्त विवेचन कुछ ऐतिहासिक तथ्यों की और इशारा करते हुए एक बात तो स्पष्ट करती है कि सृष्टि के आदि में जाट क्षेत्रीय थे, वीरभद्र शिव का अंश था जिससे जाट उत्पन्न हुए और उस समय जाट गणों के रूप में संगठित थे. 'शिव के जट' का अर्थ 'शिव के गण' लगाया जाना चाहिए परन्तु  बुद्धो व ब्राह्मणों ने इसका अर्थ 'शिव के जट्टा' अर्थात 'शिव के सिर के बाल '. लगाया I शिव के चित्र का अवलोकन करें तो देखते हैं कि इनके सिर पर जटा-जूट और चन्द्रमा हैं तथा गले में नाग है, इसका  ऐतिहासिक अर्थ यह भी हो सकता है कि शिव ने चंद्रवंशी जाटों एवं नागवंशी क्षेत्रियों को संगठित किया I लिंगपुराण में शिव के 1000 नाम दिए हैं, उनका हर नाम किसी क्षत्रिय वर्ग का प्रतीक है और अनेक जाट गोत्र इनमें से निकले हैं I रामस्वरूप जून ने अपनी जाट इतिहास की पुस्तक में वीरभद्र की वंशावली दी है जिसके अनुसार  वीरभद्र के वंशज पौनभद्र से पूनिया, कल्हण भद्र से कल्हण, दहीभद्र से दहिया, जखभद्र से जाखड, ब्रह्मभद्र से बमरोलिया आदि जाट गोत्रों की शाखायें चली, वहीँ  शिववंश में सम्मिलित अन्य कुछ गोत्र हैं: अग्रे, अघा, अगा, अगि,अगाच, भगौर, भौभिया, भौबिया, धांडा, ढांडा, धांधा, धान्धा,धीमान, हरी, हरीवार, हरीवाल, हरीकर, खांगल, किलकिल, कलकल, करकिल, उदर, उदार, उन्दरास, वरदा, अंजना आदि भी उपरोक्त की पुष्टि करती है I
5.       इण्डो-सीथियन मूल - जाट जाति की इण्डो-सीथियन मूल से उत्पत्ति का सिद्धांत जाट जाति को भारत में पैदा हुई न मान कर शक, सीथियन आदि आर्येतर जातियों के साथ इसका रक्त संबंध जोड़ते हैं I कर्नल टाड ने अपने मत में लिखा कि भारत के जाटों, रोमन गोथों और जटलैंड के जाटों के बीच रक्त-संबंध पाए जाते हैं. कर्नल टाड के इस आधार मत का विदेशी इतिहासकार  जैक्सन, कनिंघम तथा विन्सेंट स्मिथ और भारतीय जाट इतिहासकार बी.एस. ढिल्लों, बी.एस. दहिया, हुकमसिंह आदि  भी समर्थन करते हैं. ये विद्वान मानते हैं कि जाटों का मूल अभिजन 'आक्सस-घाटी' है
 इण्डो-आर्यन मूल - अनेक विद्वान जाटों को इण्डो-आर्यन मूल का मानते हैं I जाट इतिहासकार कानूनगो मानते हैं कि शारीरिक बनावट, चरित्र, भावनाओं, शासन से सम्बद्ध अवधारणाओं तथा सामाजिक संस्थाओं में जाट प्राचीन वैदिक आर्यों का, हिन्दुओं की तीनों उच्च जातियों की अपेक्षा जिनका मूल चरित्र शताब्दियों की विकास की प्रक्रिया में लुप्त हो चुका है, कहीं अधिक श्रेष्ठ प्रतिनिधि हैं I डॉ नथन सिंह (जाट इतिहास, पृ. 37) का मत है कि जाटों का मूल-अभिजन 'सप्त-सैन्धव' क्षेत्र है, वे लिखते हैं कि उनके ठेठ भारतीय होने का एक प्रमाण यह है कि जाट जाति के लोग श्रेष्ठ किसान होते हैं और भारत में खेती होने के प्रमाण 10000 वर्ष पूर्व के मिले हैं, भैंस रखना उनकी विशेष आदत है I सिन्धु-घाटी-सभ्यता के काल में   प्राप्त शिलालेखों से पता चलता है कि उस समय आदमी शक्ति की एक देवी की उपासना करता था, पशुपालता था, एक ऐसे योगी के प्रति निष्ठावान था, जिसके सिर पर दो सींग थे और जिसके चारों ओर नाग, गेंडा, सिंह और हाथी थे I शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यह योगी शिव हो सकता है तथा शिव और उसके बैल का होना, इस तथ्य की और संकेत करता है कि सिन्धु-घाटी सभ्यता अथवा उससे पूर्व का आदमी खेती करता था. यह अश्व, हाथी, बैल आदि पालता था, साथ ही शिवोपासक भी था, वह नाग की पूजा करता था I ये सभी तथ्य सिन्धु-घाटी काल में , जाट जाति की उपस्तिति के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं I
6.       चंद्रवंशी मूल - आर्यों में क्षत्रिय जो चन्द्रमा की पूजा करते थे तथा संवत के चलन में काल-गणना चन्द्रमा की गति के आधार पर करते थे वे चंद्रवंशी कहलाये I श्रीकृष्ण का जन्म भी चन्द्रवंश में हुआ था और  जाटों में अधिकांश समूह चंद्रवंशियों के हैं I
7.       सूर्यवंशी मूल - आर्यों में क्षत्रिय जो सूर्य की पूजा करते थे तथा संवत के चलन में काल गणना सूर्य की गति के आधार पर करते थे वे सूर्यवंशी कहलाये I राम और लक्ष्मन का जन्म सूर्यवंश में हुआ और जाटों में कुछ समूह कम संख्या में सूर्यवंशियों के भी हैं I
8.        नागवंशी मूल - पुरातन काल में नाग क्षत्रिय समस्त भारत में शासक थे तथा  नागवंशी क्षत्रियों ने भारत में 500 ई.पू. से 500 ई. तक राज्य किया है, इन नाग शासकों में सबसे महत्वपूर्ण और संघर्षमय इतिहास तक्षकों  का और फिर शेषनागों का रहा है I पंचनद (पंजाब) में तक्षक, कश्मीर में कर्कोटक और अनंतनाग, मारवाड़ में वासुकि नाग आदि बहुत प्रभावी रहे हैं वहीँ तक्षिला, टांकशर, सिंघपुर, टोंक, मथुरा,कर्कोटनगर, इन्दौरपुरा, नागौर, पद्मावती, कान्तिपुरी, भोगवती, विदिशा, उज्जैन, पुरिका, पौनी, भरहूत, नागपुर, नंदी-वर्धन, एरण, पैठन आदि नाग राजाओं के महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं I नागवंशी लोगों के छोटे छोटे गणराज्य होते थे तथा किसी जानवर, पक्षी या पेड़ पौधे को राज्य का प्रतीक मानते थे और उसकी पूजा करते थे तथा  इन गणराज्यों की पहचान भी इन्हीं नामों से होती थी I प्राय इतिहासकार यह भूल गए हैं कि जाटों के अधिकां गोत्रों की उत्पति का मूल   नागवंशी  क्षत्रिय पाया जाता है I
9.       ज्ञात से जाट शब्द बना : इतिहासकार डॉ नत्थन सिंह ('जाट इतिहास', पृ. 41) के अनुसार जाट शब्द की उत्पत्ति के विषय में सर्वाधिक तर्क-संगत एवं भाषा विज्ञान शास्त्र के अनुरूप उचित मत है कि जाट शब्द का निर्माण संस्कृत के 'ज्ञात' शब्द से हुआ है या ये कहें कि यह 'ज्ञात' शब्द का अपभ्रंश है Iप्राचीन ग्रंथो के अध्ययन से यह बात साफ हो जाती है कि परिस्थिति और भाषा के बदलते रूप के कारण 'ज्ञात' शब्द ने 'जाट' शब्द का रूप धारण कर लिया I महाभारत काल में शिक्षित लोगों की भाषा संस्कृत थी, इसी में साहित्य सर्जन होता था कुछ समय पश्चात जब संस्कृत का स्थान प्राकृत भाषा ने ग्रहण कर लिया तब भाषा भेद के कारण 'ज्ञात' शब्द का उच्चारण 'जाट' हो गया I आज से दो हजार वर्ष पूर्व की प्राकृत भाषा की पुस्तकों में संस्कृत 'ज्ञ' का स्थान '' एवं '' का स्थान '' हुआ मिलता है, इसकी पुष्टि व्याकरण के पंडित बेचारदास जी ने भी की है I उन्होंने कई प्राचीन प्राकृत भाषा के व्यकरणों के आधार पर नवीन प्राकृत व्याकरण बनाया है जिसमे नियम लिखा है कि संस्कृत 'ज्ञ' का '' प्राकृत में विकल्प से हो जाता है और इसी भांति '' के स्थान पर '' हो जाता है I इसके इस तथ्य की पुष्टि सम्राट अशोक के शिलालेखों से भी होती है जो उन्होंने 264-227 ई. पूर्व में धर्मलियों के रूप में स्तंभों पर खुदवाई थी, उसमें भी 'कृत'  का 'कट' और 'मृत' का 'मट' हुआ मिलता है Iअतः उपरोक्त प्रमाणों के आधार पर सिद्ध होता है कि 'जाट' शब्द संस्कृत के 'ज्ञात' शब्द का ही रूपांतर है ,यह रूपांतर कब हुआ और 'जाट' शब्द कब अस्तित्व में आया,इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता क्योंकि ये खेद का विषय है कि ब्राह्मण-श्रमण एवं बौध धर्म के संघर्ष में जाटों द्वारा ब्राह्मण धर्म का विरोध करने के कारण इसका इतिहास नष्ट हो गया I व्याकरण के विद्वान पाणिनि का जन्म ई. पूर्व आठवीं शताब्दी में प्राचीन गंधार राज्य के सालतुरा गाँव में हुआ था, जो इस समय अफगानिस्तान में है, उन्होंने अष्टाध्यायी व्याकरण में 'जट' धातु का प्रयोग कर 'जट झट संघाते' सूत्र बना दिया I इससे इस बात की पुष्टि होती है कि जाट शब्द का निर्माण ईशा पूर्व आठवीं शदी में हो चुका था I पाणिनि रचित अष्टाध्यायी व्याकरण के अनुसार  जट् धातु से संज्ञा में घ ञ् प्रत्यय होता है, जट् + घ ञ् और घ ञ प्रत्यय के घ् और ञ् की इति संज्ञा होकर लोप हो जाता है.  रह जाता है अर्थार्त जट् + अ ऐसा रूप होता है वहीँ अष्टाध्यायी व्याकरण के अनुसार  जट में के  अक्षर के  के स्थान पर वृद्धि अथवा दीर्घ हो जाता है, अत: जाट् + अ = जाट बना है I
10.   डॉ महेन्द्रसिंह आर्य आदि इतिहासकार बाइबिल मुक़द्दस के पुराने अहदनामे के आधार पर लिखते हैं कि जाट क्षत्रियों तथा जाट नामक शहर का भी उल्लेख सीरिया देश के अंतर्गत आता है, जो जाटों की राजधानी थी, जुलीत नामक एक जाट पहलवान का भी उल्लेख आता है I बाइबिल के अनुसार ये घटनाएँ वर्तमान से 4000 वर्ष पूर्व की हैं I
11.   डॉ एस.एम. युनुस जाफ़री लिखते हैं कि जाट का उल्लेख परसिया या इरान के कवि फिरदोसी (935–1020) द्वारा रचित इरान के राष्ट्रीय धर्मग्रन्थ शाहनामा में भी किया गया है, शाहनामा वस्तुत: सृष्टि की रचना से लेकर 7 वीं शदी में इरान की अरब विजत तक का इरान का इतिहास बताता है की जाट का उल्लेख रुस्तम और सोहराब नमक दो नायकों की कहानी में आता है I
12.   जाट संघ से अन्य संगठनों की उत्पत्ति: जाट संघ में भारत वर्ष के अधिकाधिक क्षत्रिय शामिल हो गए थे I जाट का अर्थ भी यही है कि जिस जाति में बहुत सी ताकतें एकजुट  हों यानि शामिल हों, एक चित हों, ऐसे ही समूह को जाट कहते हैं I जाट संघ के पश्चात् अन्य अहीर, गूजर, मराठा तथा राजपूत जैसे अलग-अलग संगठन बने, ये सभी उसी प्रकार के संघ थे जैसे  जाट संघ था I राजपूत जाति का संगठन बौद्ध धर्म के प्रभाव को कम करने के लिए ही पौराणिक ब्राहमणों ने तैयार किया था, बौद्धधर्म से पहले राजपूत नाम का कोई वर्ग या समाज न था I पौराणिक ब्राहमणों ने जिन नये चार नवक्षत्रियों को तैयार किया वे  1.सोलंकी, 2. प्रतिहार, 3. चौहान और 4. परमार थे I यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि ये चारों वर्ग जाट गोत्रों में पहले से भी थे और अब भी विद्यमान हैं I
13.   राजस्थान के इतिहासकार दशरथ शर्मा लिखते हैं कि असुरों का संहार करने के लिए वशिष्ठ ऋषि ने चार क्षत्रिय कुल उत्पन्न किये- चालुक्य, चौहान, परमार और प्रतिहार I अबुल फजल ने आईने अकबरी में इनकी उत्पति आबू पर्वत पर महाबाहू ऋषि द्वारा बौद्धों से तंग आने के कारण अग्नि कुंड से होना लिखा है अबू पर्वत पर जो क्षत्रिय माने गए उनमें से 80 प्रतिशत नागवंशी जाट थे, शेष अहीर, गुजर, यादव आदि थेI उस समय राजपूत शब्द प्रचलन में नहीं हुआ था, वस्तुत नागवंशी जाट बौद्ध धर्म में थे, उनका हिन्दुकरण किया गया और नए क्षत्रिय वर्ग में विभाजन कर दिया गया. जो गोत्र जिस क्षत्रिय वंश में शामिल हुए उनका इतिहास वहीँ से माना गया I भाट व्यवस्था कायम की गयी और भाट अपना इतिहास वहीँ से लिखना शुरू कर रहे हैं इसलिए वर्तमान क्षेत्रीय वंशों की उत्पति आबू से मान रहे हैं I अग्निवंश में सम्मिलित चार क्षत्रिय वंशियों के वापस वैदिक धर्म में आने के बाद भी बुद्ध धर्म में क्षत्रिय अधिकतर थे अतः बौद्ध धर्मावलम्बी क्षत्रियों से इनकी अलग पहचान हेतु इन्हें क्षत्रियों के स्थान पर राजपूत कहकर पुकारा जाने लगा I ब्राहमणों ने इनको अन्य क्षत्रियों पर श्रेष्ठ सिद्ध करने की कोशिश की I
उपरोक्त बातों व तथ्यों से स्पष्ट होता है कि जाट जाति क्षत्रिय समाज की सनातन और पुरातन जाति है परन्तु पौराणिक ब्राहमणों की पक्षपात पूर्ण इतिहास लेखन नीति और जाटों की आपसी एकता के अभाव और अपने इतिहास के प्रति संजीदा ना रहने के कारण जाटों ने अपना गोरवशाली इतिहास को कहीं भी सलीकेदार लिपिबद्ध नहीं किया और आज जो भी जहाँ भी जेसी भी जानकारी ,शिलालेख , पौराणिक तथ्य मिल रहे है उन सब को इतिहासकार समाज के सामने ला रहे है I
डा. शीशपाल हरडू, राष्ट्रीय अध्यक्ष हरडू मिलन मिशन




11 comments:

  1. जाट एक ऐसा योद्धा है जिसको कही भी भेज दो हार नही मानेगा ।

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  2. जाट अपने तरीके से जिते हैं

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  3. kya bkwas hai jaat kha se raja bn gye wo purane time mai chandal jati mai ate the jise goam mai shero mai ghusne nh diya jata tha or kafi jaat to rajputo rajao ki aulaad hai or sirf ek chota sa raja hua tha surajmal or sbse jayda angrejo ka sath jaato ne diya wrna desh phele azaad ho jata ku jhooti khani bna rhe ho jaat raja tmhara kisi book mai name ata hai ki jaat raja hue the kbhi phele pandito ke yadavo ke gujjaro ke rajputo ke yha tk choti kuch cast ke bhi raja bn gye par tmhara name to kisi book mai nh hai jhoot to mat kho

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    1. Jin rajputo ki ladki n mughalo se chudi thi un ki aulad Bata rajput the ya mughal

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    2. Ab paisa hai bhaiya in ke pass ye Kuch bhi ban sakte hai

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  4. Harshvardhan se pehle rajput kya the ye tu bta skta h kya amit...tum rajputo ki gaand me itna b dum nhi tha ki angrejo se yud lado sako esliye bina lade sandhi kr li...mugalo se b rajput rajao na gaand mrvai thi ye to sara desh janta h..bc tumne apni riyasate bachane ke liye apni betiyo ko mugle ke pas bheji thi...hmesha tum mugalo ke tukdo pe palte rahe or unki gand chat chat kr raj krte rahe..

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  5. jat kohi jati nahi ha ak nasal ha

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  6. जय जाट कबीला

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