Tuesday, 20 January 2015

पारिवारिक रिश्तों को सहेजने, संवारने, समेटने और जीने का नाम है संयुक्त परिवार


हमारे भारत देश में आज भी एक संयुक्त कुटुंब की परंपरा मौजूद है I भारत में सदियों से संयुक्त कुटुंब की प्रथा चली आ रही है I एक बाप की एक से ज्यादा संताने एक साथ मिलजुल कर रहती थी और  हर एक सुख दुःख में एक दुसरे के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चलते थे और घर में बुजुर्गो की एक इज्जत होती थी I चाहे सब लोग दिनभर एक दुसरे से अलग रहे हो परन्तु  रात को एक साथ मिलकर खाना खाते और घर में चल रही हर बात पर चर्चा करते I घर के बुजुर्ग एवम पुरुष मिल कर हर जिम्मेदारी को बाँट लेते थे और अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में लग जाते थे I हर कार्य चाहे वह  छोटा हो या बड़ा जिम्मेदारी का बटवारा होने से वह जल्दी ख़त्म हो जाती था और उसका बोझ भी हल्का हो जाता था I घर का हर एक सदस्य अपने परिवार की ख़ुशी में खुश और दुःख में दुखी होता I संयुक्त कुटुंब से लोगो में एक दुसरे के प्रति आदर होता था और इससे एक स्वस्थ समाज का निर्माण होता था  I इसीलिए पुराने ज़माने में लोग कम आय में भी खुश थे एवम लम्बी आयु पाते थे I उस समय में वृधाश्रम भी कम थे या न के बराबर थे क्यूंकि लोगो की जरूरते कम होती  थी और जितना था उतने में संतोष मानते थे I आज के व्यवासीकरण में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है वह है संयुक्त परिवार का टूटना ,समय का चक्र बदलता गया और लोगो की जरूरते बढती गयी I जरूरतों के साथ साथ महंगाई और प्रतिस्पर्धा भी बढती गयी I लोगो को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादा वक़्त अपने कार्यस्थल पर और व्यवसाय में लगाना पड़ा और घर से दूर भी रहना पड़ा और इसी तरह लोग अपने में ही व्यस्त रहने लग गए I इस तरह से संयुक्त परिवार की भावना ख़त्म होने लग गयी I आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में भाई भाई को और माँ बाप को भी एक बोझ मानने लग गए I आज भाई भाई के घर भी मेहमान बन कर जाने लगा है I शादी ब्याह जैसे मौके पर भी जहाँ पूरा घर और परिवार एक होकर काम करता था वही कार्य आज ठेकेदारी ने ले लिया है I भाई भाई से दूर हो रहा, माँ बाप की अहमियत भी घट रही है वृधाश्रमो की संख्या भी बढ़ने रही है I जिस माँ बाप ने हमें जन्म दिया और अपने सुख चैन की परवाह किये बिना हमें पढाया लिखाया और हमें एक काबिल इन्सान बनाया, आज वही माँ बाप हमें बोझ लगने लग गए है I जो भाई हमारे कंधे से कन्धा मिला कर चल सकता है वही भाई आज जमींन जायदाद व सम्पति में हिस्सेदार होने के चलते हमें हमारे दुश्मन जैसा लगने लगा है I मतलब आज चाचा, मामा, मौसी इन सभी रिश्तो की अहमियत कम होने लगी है I मानों ये सभी रिश्ते सिर्फ दिखावे के लिए है I आज अगर कोई अपने परिवार का या कोई रिश्तेदार हमारे घर आ जाये तो आने से पहले हम जाने की बात करने लग जाते  है I माँ बाप को भी हम मानों कोई वस्तु हो इस तरह समझ कर हम सब भाई भाई अपने घर रखने का समय निश्चित करते लेते है और उतने समय तक ही रखते है I मतलब हमारी जरूरते बढ़ने के साथ साथ हम हमारे परिवार और पारिवारिक मूल्यों को भी भूल चुके है I
संयुक्त परिवार के नाम पर हमें एक साथ दो या तीन या उससे भी ज्यादा पीढि़यों का प्यार और अपनापन मिलता था वहीं इसके बिखरने से अब हर जगह एकल परिवार के नाम पर रिश्ते बस स्वार्थ का पर्याय भर रह गये हैं। संयुक्त परिवार के नाम पर जब एक साथ सभी एक छत के नीचे निवास करते थे तो सबसे अनुकूल प्रभाव बच्चों पर पड़ता था। बात चाहे उनकी सुरक्षा की हो या संस्कारों की , सभी बच्चे एक छत के नीचे कभी दादी की कहानियों में तो कभी दादा जी के अनुभवों में समाहित होते थे। इस प्रकार हम कह सकते है कि सामाजिक संस्कार स्वत: अंतरित होते रहते थे। आज इस एकल परिवार की परिपाटी में संबंधों में जो बिखराव आया है उसकी मुख्य वजह हमारे आचार, व्यवहार, अपनी जरूरतों को ज्यादा महत्व एवं जीवन पद्धति में आने वाला बदलाव है। हालांकि कुछ लोग इसके टूटने को स्वाभाविक मानते हैं। आज के परिवेश की सबसे बड़ी खामी किसी का किसी भी स्तर पर समझौता न करना स्वतंत्र व स्वछन्द सोच और समर्पण का आभाव है । सबके साथ रहने और अपने लोगों को सुनने, गुनने और समझने के लिए संयुक्त परिवार की व्यवस्था ने इतने रिश्ते दिये हैं जो शायद दुनिया के नक्शे पर कहीं भी नहीं मिलते। रिश्तों को जीने की कला से आज की युवा पीढ़ी का पलायन सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। निजी स्वतंत्रता के नाम पर बुजुर्गों का अपमान एवं सिर्फ और सिर्फ आर्थिक उन्नति को ही सर्वांगिण विकास समझना आज आधुनिकता की परिभाषा बन गई है। संयुक्त और एकल परिवार के फायदे नुकसान पर बहस की गुंजाइस भले हो, इसकी खामियों- खूबियों पर चर्चा कराने की संभावनायें भी हो सकती हैं, इस पर वाद-विवाद भी हो सकता, फिर भी संयुक्त रूप से परिवार में रहने का सीधा और स्पष्ट फायदा तो यह दिखता ही है कि हम जिन लोगों के बीच रहने की बात करते वो हमारे अपने हैं। कहते हैं कि खून कितना भी पतला हो जाये कभी पानी नहीं बन सकता यानि हमेशा पानी से गाढ़ा ही रहता है। सिर्फ इसकी जरूरतें और पारिवारिक जनों के महत्व को समझने की आवश्यकता है। पारिवारिक रिश्तों को सहेजने, समेटने और उन्हें जीने का नाम है संयुक्त परिवार
बहरहाल संयुक्त परिवार की मजबूत व्यवस्था कभी हमारी पहचान होती थी, पर आज भारतीय समाज भी छोटे-छोटे एकल परिवारों का समाज बनता जा रहा है। इस परिवर्तन के लिए जिम्मेवार दूसरी वजह भले अस्पष्ट हो पर स्वतंत्र निर्णय लेने,  धन संपदा की अत्यधिक चाहत, और परंपरागत मूल्यों-मान्यताओं से दूर होने का दूसरा नाम एकल परिवारहै।
 आज अकेले रहना अपने आप में एक अलग पहचान या एक स्टेट्स माना जाता है I महानगरो में से तो संयुक्त कुटुंब की प्रथा कबसे खत्म हो चुकी है I गलती हमारी भी नहीं है, आज महंगाई और प्रतिस्पर्धा ही इतनी है की हम अपनी नौकरी या व्यवसाय की वजह से एक दिन के लिए भी कहीं दूर नहीं राह सकते क्योंको आज निजीकरण और प्रतिस्पर्धा के युग में न जाने कब अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ जाये I ऊपर से आज कल की शिक्षा और बच्चो की परवरिश भी इतनी मुश्किल व महंगी हो गई है की हम एक कमाते है तो वहां तीन खर्च होते है I ऐसे में अगर घर पर कोई भी खाली व बेकार निठल्ला बैठा रहे तो वो अखरता है I आज समय ही ऐसा है I
लेकिन हमे समय की दुहाई दे कर हमारे परिवार और उसके प्रति अपनी जिम्मेदारियो को नहीं भूलना चाहिए I आज कल अकेले रहते हुए कई लोग अवसाद ग्रस्त होकर ख़ुदकुशी और आत्महत्या करने लगे है और ज्यादातर लोग दिल, रक्तचाप, मधुमेह व  मानसिक बीमारी ग्रस्त रहने लगे है I जो संयुक्त कुटुंब की भावना लोगो के सुख का कारण थी आज उसके न रहने से उसके दुष्परिणाम भी हमारे सामने आ  रहे है I
हम समय की दुहाई देकर देकर हमारे परिवार के प्रति जिम्मेदारी नहीं भुला सकते I चलो हर समय हमारा  साथ रहना मुमकिन नहीं लेकिन त्योहारों पर, खास मोकों पर तो हम एक साथ मिल ही सकते है, हर प्रसंग पर  हम एक दुसरे के साथ खड़े रह सकते है और एक दुसरे के सुख दुःख में हिस्सेदारी कर सकते है I हमारा देश अपनी संस्कृति और उसकी पारिवारिक रचना के लिए जाना जाता है I आओ हम इसे बनाये रखे और हम हमारे परिवार और सदस्यों के प्रति वफादार रहे I अगर हमारा परिवार स्वस्थ होगा तो एक आदर्श समाज का निर्माण होगा और अगर समाज में आदर्शता होगी तो देश भी आगे बढेगा  क्यूंकि देश की प्रगति में समाज भी एक महत्वपूर्ण अंग है I अत: बस एक ही विनती है आप चाहे कोई रिश्ते को माने या न माने परन्तु माँ बाप दिल नत दुखाना और उन्हें किसी भी कीमत पर अपने से मत दूर करना I वे ही है जो हमे इस दुनिया में लाये और हमे काबिल बनाया I



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