Saturday, 24 January 2015

भारत की विरासत “समृद्धि और नैतिकता”

भारत की विरासत “समृद्धि और नैतिकता”
डा.शीशपाल हरडू
समृद्धि का सामान्य अर्थ हम संपन्नता से लगाते है वहीँ सुख,सुविधा को समृद्धि का पर्याय मानते है, जबकि ऐसा नहीं है I सुख सहजता में, त्याग में, परोपकार में या संतोष में मिलता है ,समृद्धि तो मात्र साधन है परन्तु आज हम समृद्धि को ही सुख मानने लगे हैं, सुविधा को ही सब कुछ मानने लगे है और आज समाज में कोई भी रिश्ता-नाता समृद्धि से बड़ा नहीं माना जाता जो समाज के ह्रास का सूचक है I सामान्यत लोग समृद्धि को केवल भौतिक और अध्यात्मिक रूप में ही समझते है और स्वीकार करते हैI भारतवर्ष चिरकाल से अध्यात्मिक रूप संपन्न देश रहा है ऋषि-मुनिओं ने, संत महात्माओं ने ग्रंथो ,वेद-पुराणों में अध्यात्मिक समृद्धि के अनेक सिद्धांत ,मत व प्रयोजन बताये, समझाये है और अकाट्य प्रमाण भी दिए है I ईश्वर द्वारा रचित सृष्टि में मानव द्वारा की गई  क्रिया से परिणाम/ प्रतिक्रिया उत्पन्न होता है जिसका प्रभाव इस सृष्टि के पदार्थ पर पड़ता है, मानव विवेकशील और गुण-अवगुण युक्त प्राणी है इस लिए उस द्वारा की गई प्रत्येक क्रिया उसकी शांति व समृद्धि को भी प्रभावित करती है और शांति व समृद्धि के लिए गीता  में ‘गुण सिद्धांत’ और ‘निष्काम सिद्धांत’ दिए गए है ,जो विश्व हित हेतु समरसता , शांति व समृद्धि स्थापित करने में सहायक है I गुण सिद्धांत अनुसार प्रकृति से सत्व, रजस और तमस गुण उत्पन होते है ओर मनुष्य इन गुणों के साथ बंधन स्वीकार कर लेता है तथा शारीर, इन्द्रियां ,मन, बुद्धि व पदार्थ सब गुणमय हो जाते है और इनसे होने वाली क्रिया कर्म कहलाती है I सत्वगुण सुख में, रजोगुण सकाम कर्म में और तमोगुण आलस्य में मानव को स्थिर करता है I मनुष्य में जिस गुण की अधिकता होगी उसी के अनुसार कार्य व क्रिया करता है I वर्तमान में तमोगुण की प्रधानता दिखाई देती है, प्रत्येक मानव स्वार्थ से ग्रस्त है, हर कार्य अपेक्षा पूर्ण होता है, अपेक्षा की पूर्ति न होने मानसिक तनाव व अवसाद ग्रस्त रहता है और अपने स्वभाव में कटुता, हीनता, द्वेष, इर्ष्या को अपना रहा है और आज हालात विस्फोटक हो चुके है I आज विश्व शांति व समृद्धि के लिए मनुष्य में सत्व गुणों को विकसित करने की आवश्यकता है I  मनुष्य को  कर्म की अनिवार्यता को स्वीकार करते हुए सकाम कर्म व निष्काम कर्म का स्व-विवेक से निर्धारण करना चाहिए I सकाम कर्म में चाह, इच्छा, आकांक्षा छुपी होती है जिसमे समरसता व सद्भावना का आभाव होता है अत: आज  निष्काम कर्म की आवश्यकता है जिससे बिना किसी अहंकार, ममता या आसक्ति के कर्म किया जाये ओए जो समुदाय, समाज, देश और विश्व हेतु शांति व समृद्धि का रास्ता कायम कर सके I
आज दुसरे अर्थ में समृद्धि को भौतिक समृद्धि के रूप में लेते है, आज मनुष्य को वस्तु मान कर मूल्य निर्धारित कर रहे है I अर्थ या धन साधन होता है साध्य नहीं परन्तु आज मानव दास और धन स्वामी बन कर पेश हो रहे है , रिश्ते दोलत से तोले जाने लगे है ज़िन्दगी का मकसद सर्वाधिक धन इकट्टा करना बना लिया है I भौतिकता की अंध दौड़ में मनुष्य,समुदाय, समाज, देश और विश्व की तमाम परम्पराएँ, मर्यादाएं व सिद्धांत बेमौत मर रहे है और मानव एकल होता जा रहा हैI आर्थिक सम्पन्नता की चाह में हम  मानवता की बलि चढ़ा रहे है, रिश्तों का खून कर रहे है, ममता, करुना, प्रेम, प्यार और सहचार को भूल कर निर्जीव दौलत से प्यार कर रहे है I माना जीने और जीवनयापन के लिए धन जरूरी है परन्तु ज़िन्दगी का मकसद धन को बना कहाँ उचित हैI कहते है की जिस गृहस्थ के पास धन नहीं वो दो कोडी का और जिस संत के पास धन हो वो दो कोडी का होता है , वहीँ ये भी कहा गया है की ईमानदारी और मेहनत की कमाई ही बरकत करती है बेईमानी से कमाया धन भावी पीढ़ियों को खत्म कर देता है I इसीलिए हमारे शास्त्रों में हमारी कमाई का दसवां हिस्सा दान पुन्य में खर्च करने का नियोजन रखा है ताकि यदि गलती से भी अनीति का धन आ जाये तो वो खुद पर खर्च ना हो सके Iजैसा खायेंगे अन्न वैसा ही बनेगा मन ; इसलिए ईमानदारी के धन से लाया अन्न हमारे मन, स्वभाव व सोच को शुद्ध व शांत रखता है और अनीति से कमाए अन्न को खाने से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और अनैतिक पथ पर ले जाकर पतन में डाल देती है I
आज हमारे युवा साथियों के लिए अध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि से ज्यादा शिक्षा, चरित्र, स्वास्थ्य , और वैचारिक समृधि की ज्यादा आवश्यकता है I आज प्रतिस्पर्धा और तकनीकीयुग है और इस युग में किसी व्यक्ति और देश की समृद्धि का पैमाना वहां की शिक्षा का स्तर से है I अब्राहम लिंकन ने शिक्षा के महत्व को स्वीकारते हुए कहा की “एक पीढ़ी में किसी कक्षा का दर्शन ही अगली पीढ़ी में सरकार का दर्शन होता है “ वहीँ भारत के ज्ञान आयोग के पुर्व प्रमुख सैम पित्रोदा ने कहा की “आजकल वैश्विक अर्थव्यवस्था, विकास, धन उत्पत्ति और संपन्नता की संचालक शक्ति सिर्फ शिक्षा को ही कहा जा जा सकता है I” शिक्षा का अर्थ अक्षर ज्ञान और साक्षर होने से नहीं बल्कि मूल्य आधारित, संस्कारित एवम ज्ञानपरक होना है I हमे शिक्षा से क्लर्क या मशीनी मानव नहीं बल्कि नैतिक व चरित्रवान नागरिक बनाने की जरूरत है जो अनुशासित, कर्मठ, ईमानदार और देश-भक्त नागरिक देश को से सके I आज फैशन ,पाश्चत्य शैली ,भौतिकवाद व बाजारवाद के दौर में युवा वर्ग के चरित्र में लगातार गिरावट एक चिन्ता का विषय है, आपके चरित्र से ही भविष्य का चित्र बनता है परन्तु अफ़सोस आज चरित्र की चादर मेली और बदरंग हो रही है , रिश्ते के तार, अपनेपन की डोर और देशप्रेम का जज्बा गायब हो रहा है I  आज सार्वजनिक हितों पर व्यक्तिगत हित हावी हो रहे है, चोरी, बईमानी, गबन, बलात्कार, उग्रवाद और नशा प्रवर्ती युवा वर्ग पर हावी हो रही है , राजनीति भ्रष्ट हो रही है I इसलिए आज के समय की प्रमुख मांग चरित्रवान नागरिक पैदा करने वाली शिक्षा की है ताकि देश और युवा सुरक्षित रह सके I
आज पाश्चात्य रहन-सहन और खानपान का हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है , देश की पूंजी उसके युवा होते है और उन पर शिक्षा के रूप में विनियोग करके भावी समृद्धि की बुनियाद रखी जाती हैI
परन्तु खेद का विषय है की आज योवनकाल कब आता है पता ही नहीं चलता I युवा का दूसरा रूप वायु होता है जिसके वेग की शक्ति का अनुमान लगाना नामुमकिन होता है ,युवा के जोश जज्बे और जनून पर ही देश के कल की तक़दीर लिखी जाती है I अत: आज जरूरत है युवा वर्ग को  स्वास्थ्य परक शिक्षा, पारम्परिक खेल और उचित वातावरण देने की , ताकि युवा शक्ति को सृजनात्मक व सकारात्मक कार्यों में लगाया जा सके और विघटनकारी व विध्वंसकारी कार्यों से दूर रखा जा सके I कहते है की स्वास्थ्य तन में ही स्वास्थ्य मन निवास करता है, स्वास्थ्य मन में ही स्वास्थ्य विचार आते है और विचारों से ही भविष्य बनता है I इसलिए हमें वैचारिक दृष्टि से समृद्ध होना परम आवश्यक है और वैचारिक दृष्टि से समृद्ध तब होंगे जब शुद्ध व सात्विक भोजन करने ,सकारात्मक सोच व लक्ष्य निर्धारित करने, स्वस्थ व व्यवस्थित रहने, स्वाध्याय करने, संस्कारित संगत करने , आदर्श शिक्षा लेने, प्रगतिशील व चिन्तनशील लोगो की जीवनी पढने , अच्छा व बौधिक साहित्य पढने, सकारात्मक सोच का विकास व नकारात्मक सोच का त्याग करने से और देश के नायक ,वीर सपूतों को आदर्श मानने से I शहीदे-आज़म भगत सिंह अपने अंतिम वक्त तक स्वाध्याय में लगे रहे और युवा साथियों को संदेश दे गए की विचार ना तो कभी बूढ़े होते है ना कभी मरते है बल्कि समय की कसौटी पर और तेज व तिक्खे होते जाते है I समय के साथ आदमी मर जाता है परन्तु विचार हमेशा जिन्दा रहते है, इसलिए हमें वैचारिक दृष्टि से समृद्ध शिक्षा युवा साथियों को देनी चाहिए ताकि अच्छे, प्रगतिशील, चरित्रवान और देशभगत नागरिक पैदा करके देश को समृद्ध बनाया जा सके I
आओ हम सब मिल कर भारत देश की विरासत “समृद्धि और नैतिकता” को संजोये, संवारें और पुनस्थापित करे ताकि देश को अध्यात्मिक,आर्थिक ,भौतिक रूप से मजबूत बनाते हुए शिक्षा, चरित्र, स्वास्थ्य, और वैचारिक रूप से समृधि बनाकर इसका लाभ हर एक नागरिक तक पहुँचाया जा सके और देश और देश के नागरिकों को सर्व संपन्न बनाया जा सके I
दिनांक 24/01/2015
  


1 comment:

  1. लोक हित के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा

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