समाज
व संगठन की आवश्यकता- डा.शीशपाल हरडू
समाज
व संगठन की आवश्यकता -
मानव एक सामाजिक प्राणी है उसे समाज की आवश्यकता हर कदम
पर पड़ती है , बिना समाज के मानव के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती I समाज से
निकल के जब कोई अकेला हो जाता है तो वह मनुष्य अपना आत्मनियंत्रण ओर आत्मविश्वास
खो देता है, अवसाद, तनाव व अकेलेपन में खो जाता है तथा असफलता के अँधेरे कुएं में
जा गिरता है I इसीलिए व्यक्ति से परिवार, परिवार से गाँव, गाँव से समाज, समाज से
देश और देश से दुनियां बनी और इसकी परस्पर निर्भरता व सहयोग की परंपरा से अपना जीवन सुखद, सरल व सुरक्षित बनाया I आज
पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर पुन: एकल परिवार और एकांकी जीवन की
मृगतृष्णा में फंस रहा है और समाज को विघटित करते हुए संयुक्त परिवार खत्म कर रहे
है तथा युवा अपना जीवन बर्बाद कर रहा है I आज समाज व परिवार में जो संकिरणता
व्याप्त है, घर परिवार का अस्तित्व खतरे में है, रिश्ते दाव पर है और हम अँधेरे की
ओर भाग रहे है इसका बचाव हमारी परम्परा, संस्कृति में निहित नियम ‘वसुदेव कुटुम्भ’
में है और अपना निज हित छोड़ कर सर्व हित व विघटन को खत्म कर संगठन को अपनाना होगा
तभी हम सहज व सुरक्षित जीवन जी पाएंगे I
संघों
शक्ति कलियुगे – कलयुग
में संघ की शक्ति ही महत्वपूर्ण व प्रभावी है, संगठन ही हम सुरक्षित है व हमारा
कल्याण है I संगठन में समूह की शक्ति व समझ से सफलता में गुणात्मक वृद्धि होती है
तथा भार व कष्ट विभाजित हो जाता है तभी तो हम किसी महत्वपूर्ण कार्य को करते है तब
संगठित प्रयास करते है I भगवान राम ने वानर सेना का समूह बनाया तो भगवान कृष्ण ने
पांडवों को संगठित किया ओर अनीति व अधर्म के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी न की अकेले- अकेले
रहकर I ठीक इसी प्रकार आज युवा साथिओं से निवेदन की नव-युगनिर्माण , नव-सृजन हेतु
तथा अपने पूर्वजों की धरोहर को संरक्षित करने, संवारने व संजोने के लिए हमें हमारे
समज को संगठित करना होगा तथा हमें अपनी पहचान प्रगतिशील, कर्मठ, शिक्षित, सहकार,
सहयोगी व सृजनशील की बनानी होगी I अब हमें भाईचारे की मशाल हाथ में लेकर प्रेम
प्यार का संदेश देते हुए संयुक्त व संगठित होना है I
अकेला चना पहाड़ नहीं फोड़ सकता – एक और एक मिलकर दो नहीं ग्यारह की ताकत बनते है ,
इसीप्रकार एक एक सींख से झाड़ू बनती है और यदि सींख बिखर जाये तो कचरा कहलाती है और
जब वही सींख इकट्ठी होकर झाड़ू बनती है तो कचरे को ही साफ करती है I इसलिए अगर हम
सब अलग अलग बिखरे रहेंगे तो हमारी ताकत व पहचान न के बराबर है परन्तु जब हम समूह
में संगठित होकर समाज के सामने आयेंगे तो एक नई नज़ीर पेश होगी I जब दुर्जन लोग ताश
खेलने या शराब पीने के लिए तुरंत समूह बना लेते है तो क्या हम अच्छे उद्देश्य, शुभ
कर्म व श्रेष्ठ चिंतन के लिए संगठित नहीं हो सकते ? यदि हम सृजनात्मक उद्देश्य के लिए संगठित होकर
प्रयास करेंगे तो समाज की तस्वीर व तक़दीर ही बदल जाएगी I आज लोगों की सोच संकीर्ण
व नजरिया नकारात्मक हो गया है और ‘अकेला चलो’ की राह पर चल रहा है जबकि शक्ति में
वृद्धि या कमी गुणात्मक होती है I सामूहिकता में सहयोग, सुझाव, विचार, क्रिया व
शक्ति का संचार बहुकोणीय हो जाता है तथा सफलता सरल हो जाती है I
संगठन की कार्यप्रणाली –
संगठन या समूह में कार्य करने के लिए हमें बहुत ज्यादा त्याग करने की आवश्यकता
नहीं है, इसके लिए आपको अपनी सोच को सकारात्मक बनाना होगा I स्वयं का और अपने
बच्चों का भरण-पोषण व रक्षा तो पशु पक्षी योनी में भी किया जाता है परन्तु मानव
योनी में आकर हम अपने विवेकानुसार समाज में अपना एक स्थान बनाते है जिसे छोटे स्तर
पर परिवार और विस्तृत स्तर पर समाज की संज्ञा दी जाती है व उसमे स्वयं को सुरक्षित
महसूस करते है I समूह में हमे बस छोटे स्तर से विस्तृत स्तर की सोच, विचाधारा को
बढ़ावा देते हुए स्वयं के विकास व उन्नति में समाज का विकास व उन्नति खोजनी है I
घर-परिवार, नाते-रिश्तेदारों की जिम्मेदारी निभाने के बाद फुर्सत के कुछ क्षण समाज
चिंतन हेतु लगाइए, थोडा वक्त समाज को भी दीजिये क्योंकि समाज का एक भाग हमारा
परिवार है और परिवार के अभिन्न अंग आप है I यदि सब साथी एक-एक दिन संगठन को दें व यदि
365 साथी जुड़ जाये तो 365 दिन मिल गए I यह कार्य एक-दो या पांच-सात का नहीं, सबका
है , सबके लिए है और सब करें क्योंकि बूंद-बूंद से ही सागर भरता है I
संगठन के लाभ – 1.
मिलजुल कर सृजनात्मक विषयों पर सार्थक चर्चा संभव होगी I
2.
सामाजिक समस्याओं व कुरीतिओं का निवारण संभव होगा I
3.
समूह व सहकारिता की भावना का विकास होगा I
4.
अपनी विरासत व इतिहास का सृजन व सरंक्षण संभव होगा I
5.
समाज में शिक्षा के प्रचार प्रसार को गति मिलेगी I
23/03/2015