Wednesday, 18 February 2015

जाट समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयाँ और युवा की भूमिका- डा.शीशपाल हरडू


आज का युग प्रतिस्पर्धा का है इसमें व्यक्ति को सजग, सावधान व जागरूक रहकर उपलब्ध संसाधनों का मितव्यततापूर्ण उपयोग करना चाहिए परन्तु खेद का विषय है की हमारा जाट समाज आज भी अनेक कुरीतियों व सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त बना हुआ है I हालांकि हमने समय के साथ-साथ अपने समाज में सामाजिक चेतना लेन का प्रयास किया है और समाज के बहुत से चिंतको, विचारकों व शिक्षित अग्रणी लोगों से इन सामाजिक बुराइयों पर लोगों को आगाह भी किया और विरोध भी मगर हमारा समाज में अन्य जातियों के मुकाबले शिक्षा के क्षेत्र में काफी पीछे है वहीँ स्वयं को मार्शल कौम से विभूषित करते हुए परस्पर मतभेद कायम रखते हुए संगठित भी नहीं हो रहा I कृषि के क्षेत्र में अधिपत्य तो है ही आज व्यापार और नोकरी-पेशा में भी अपनी हाजरी दर्ज़ करवाने के बावजूद भी हम राजनितिक दृष्टि से बहुत पिछड़े हुए है और हमारी जनसँख्या के अनुपात में सरकार में भागीदारी नहीं मिल रही और जो लोग राजनीति में हमारे नुमांइंदे है उन्होंने हमेशा समाज के हितों की बजाय अपने व्यक्तिगत हितों को प्राथमिकता देते रहे और समाज का इस्तेमाल स्वार्थपूर्ति हेतु करते रहे है I
आज हमारी सबसे पहली समस्या शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी है क्योंकि हमारा समाज ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र से सम्बन्ध रखता है जहाँ अच्छे व गुणवता वाले विद्यालयों का आभाव है और उन्हें अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलवाने हेतु शहरों की और जाना पड़ता है जो काफी महंगा होने के कारण ज्यादातर लोग वहन नहीं कर पाते है तथा अपने बच्चों को उनकी पढाई बीच में ही छुड़वा लेते  है I शिक्षा आज की प्राथमिकता और व्यक्ति की उन्नति का आधार होती है I हर क्षेत्र में आज प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है जिसमे हम बिना शिक्षा के खड़े नहीं रह सकते I कहने को तो हम अपनी साक्षरता दर बढ़ा रहे है परन्तु इंजीनियरिग, मेडिकल और प्रशासनिक सेवा क्षेत्र में हमारा प्रतिनिधित्व बहुत ही कम है अत: हमें अपने बच्चों को बेहतर, गुणवत्तापूर्ण और अच्छी शिक्षा दिलवानी चाहिए तथा लोगो में शिक्षा के प्रति विशेष जाग्रति लेन का प्रयास करना होगा तभी हम अपने समाज जो दुसरे लोगों के बराबर ला पाएंगे I
हमारी दूसरी समस्या समाज में व्याप्त नशाखोरी है जो न केवल कर्ज़ में डुबो रही है बल्कि युवा पीढ़ी को खत्म कर रही है I जिस समाज और देश का युवा खत्म हो जाता है उसके लिए अपना वजूद बचना मुश्किल हो जाता है I नशा नाश का मार्ग होता है और हम शराब, अफ़ीम, भुक्की, गांजा,तम्बाकू, जर्दा के साथ साथ स्मेक, ब्राउन शुगर इत्यादि नशों में फंस कर अपना और अपने परिवार का नाश कर रहे है I हमारे समाज में विवाह-शादियों में और बुजुर्ग की मौत के अवसर पर मनुहार के नाम पर शराब और अफीम का जो खेल खेला जाता है वो न केवल सामाजिक बुराई है बल्कि समाज के लिए शर्मिंदगी व कलंक है I लोगों को सामाजिक दवाब में परम्परा निभाने की एवज में न केवल कर्ज़ में दबना पड़ रहा है, युवा वर्ग को नशे की अंधे कुए में धकेलने का काम भी हम कर रहे है I इसलिए हमे इस बुराई को खत्म करने हेतु जागरूकता लानी होगी और पहल भी करनी होगी I
हमारे समाज में दूसरी बड़ी समस्या दहेज़ रूपी दानव की है जो हमारी बहन-बेटियों को तो निगल ही रहा है साथ ही माँ-बाप को कर्ज़ के दलदल में धकेल रहा है और सामाजिक रिश्तों को खत्म कर रहा है I हिन्दू धर्म में कन्यादान और यथाशक्ति-यथासमर्थ दाज व दान का तो महत्व तो बताया गया है परन्तु आज यही परम्परा दानव का रूप ले चुकी है और सामाजिक स्पर्धा और इज्जत के नाम पर इसको कुरीति बना दिया है जो आज  कन्या भ्रूण हत्या के लिए व लिंगानुपात बिगड़ने के कारण अपराध और अराजकता के लिए सीधे तौर पर उत्तरदायी है अत: हमे दहेज़ के दंश से समाज को मुक्त करते हुए कन्यादान को सर्वोपरी स्वीकार करते हुए इस कुरीति को भी खत्म करना होगा I
आज जाट समाज के विरुद्ध दुसरे लोगों द्वारा किए जा रहे भ्रामक दुष्प्रचार का सामना भी करना है और उनको उचित मंच व माध्यम से जवाब भी देना है इस सब के लिए हमें अपने व्यक्तिगत हित व स्वार्थ छोड़ कर अपने समाज की उन्नति और भविष्य के बारे में सोचना होगा  I  हमे अपने समाज को एकजुट रखते हुए स्वस्थ, सभ्य, स्वच्छ, समृद्ध. शिक्षित और सुंदर समाज का निर्माण करने में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए और जो लोग हमें नेतृत्व दे रहे है उन्हें अपने समाज के प्रति जवाबदेह बनना होगा या बनाना होगा तथा सामाजिक संगठनों के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराई बारे खुले मंच पर चर्चा करते हुए उनका उचित समाधान निकल कर समाज को उन्नत व सक्षम समाज बनाना होगा तभी हम अपने समाज के कर्ज़ से मुक्त हो पाएंगे और इस पावन व क्रन्तिकारी कार्य को हमारी युवा पीढ़ी ही सरंजाम तक पंहुचा सकती है इस लिए आओ मेरे युवा साथियों हम सब मिलकर स्वामी विवेकानंद के कथन “उठो,जागो और तब तक मत रुकों जब तक मंज़िल ना मिल जाये “ को सार्थक करे और सक्षम बने I

18/02/2015 

2 comments:

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