Wednesday, 8 April 2015

हिन्दू देवी देवता और उनसे जुड़ी शिक्षा – डा. शीशपाल हरडू

हिन्दू देवी देवता और उनसे जुड़ी शिक्षा – डा. शीशपाल हरडू
शिव परिवार – भगवान शिव के परिवार में भिन्नता व अनेकता के बावजूद एक आदर्श परिवार का उदाहरण है I इसमें भगवान शिव ख़ुद भभूत लगाये बाघम्बर ओढ़े गले में सर्पों की व मुंड माला धारण किए जटाधारी मस्त लाखों वर्षों तक समाधि लगाये रखने वाले, और नंदी पर सवारी करने वाले I माता पार्वती रूपमती, श्रंगार शौकीन, नारी चरित्र अनुसार जिद्द करने वाली और शेर की सवारी करने वाली I एक बेटा कार्तिकेय अष्टावक्रधारी और करे मोर की सवारी वहीँ दूसरा बेटा गणेश जिसके बड़े बड़े कान, बड़ा पेट, छोटी आँखे, लम्बा नाक और सवारी वो भी चूहे की I घर में कुल चार सदस्य और चारों की पृकृति अलग अलग फिर भी आपस में पूरा सामजस्य I इन चारों के पास पांच पशु या जीव-जंतु यानि चूहा, सांप, मोर, नंदी और शेर तथा इनमें परस्पर शत्रुता का भाव I चूहे का शत्रु सांप, सांप का शत्रु मोर, नंदी का शत्रु शेर फिर भी इनमें से किसी ने भी शत्रुता नहीं निभाई और सब प्रेम से रहे I एक बात और भी महत्वपूर्ण की शिवजी का वाहन नंदी पार्वती के वाहन शेर से कमजोर फिर भी इनमें कोई झगडा नहीं बल्कि सब सहयोग और प्यार से रहते है I यह परिवार हमें शिक्षा देता है की चाहे हमारी पृकृति अलग अलग हो, विचार भिन्न भिन्न हो, परन्तु एक दुसरे की भावना का ख्याल रखते हुए हमें परस्पर प्रेम प्यार व सहयोग के साथ समूह भाव से संयुक्त रहकर ही हम उन्नति कर सकते है I 
भगवान गणेश – भगवान गणेश जिसके बड़े बड़े कान, बड़ा पेट, छोटी आँखे, लम्बा नाक और सवारी वो भी चूहे की I बड़े कान हमें शिक्षा देते है की हमेशा सावधान रहें, हर बात को ध्यान से सुने ; छोटी आँखे हमें बताती है की शुभ व अच्छाई को देखो ; बड़ा पेट कहता है की बात को पचाना सीखो ; लम्बा नाक हमें भविष्य की घटनाओं को पहले से ही भांपना यानि हर घटना का समय रहते पता लगाना और उसका उचित समाधान निकालना सिखाता है वहीँ इतने बड़े शारीर वाले की सवारी चूहा हमें बताता है की जो अपना है और जो अपने पास है उसी से संतुष्ट रहें, मितव्यतता करें I
राम, लक्ष्मण और सीता – भगवान राम एक मर्यादा पुरुषोतम, सर्वहितकारी व शूरवीर राजा, आज्ञाकारी पुत्र, वचन का पालन करने वाला राजा, भाई के लिए प्रेम और सत्य आचरण एवं आदर्श जीवन का प्रतीक I लक्ष्मण जैसा भाई प्रेम और निस्वार्थ त्याग एवं शूरवीरता का विशुद्ध चित्रण I सीता विपरीत परिस्थिति के बावजूद संकट के समय भी पति का साथ निभाने व आदर्श भक्ति की प्रतिमूर्ति I
इंद्रजीत और विभीषण – रावण के दोनों भाई , इंद्रजीत अन्यायी व अधर्मी रावण के पक्ष में राम के विरुद्ध लड़ा परन्तु समाज में इनका सम्मानित नाम जबकि विभीषन सत्य, धर्म व न्याय के लिए अपने भाई रावण को छोड़ कर राम का साथ दिया फिर भी समाज में इनका कोई नाम लेना तो दूर अपने बच्चे का नाम भी नहीं रखते I कहते है की जब विभीषण राम की शरण में जाने लगा तो इंद्रजीत ने उनको रोकते हुए कहा की ‘’भाई मै भी जनता हूँ की रावण अन्यायी व अधर्मी है परन्तु एक क्षत्रिय का धर्म यही कहता है की वो भाई को कभी भी दगा न दे और मुसीबत के समय तो उसका साथ देना एक क्षत्रिय का धर्म है’’ परन्तु विभीषन नहीं माना तो आज भी समाज उसको भाई का द्रोही मानता है और घर का भेदी लंका ढहाए कहावत प्रचलित हुई I भाई द्रोह के कारण आज भी लोग अपने बच्चे का नाम विभीषण नहीं रखते I 
शबरी – शबरी के गुरू जब देवलोक जाने लगे तो शबरी ने अपने गुरू से शंका जाहिर कि की जंगल में इस पर्ण कुटीर में भयानक जंगली जीवों व राक्षसों के मध्य मै अकेली औरत कैसे रह पाऊँगी तो गुरूजी ने कहा की मेरे जाने के बाद आपकी कुटिया में सिवाय भगवान राम के अन्य कोई कदम नहीं रखेगा और एक दिन भगवान राम जरूर आयेंगे I शबरी के यकीन, विश्वास व भरोसे ने भगवान राम को उसकी कुटिया में आकर झूठे बेर भी खाने को मजबूर होना पड़ा I
लक्ष्मी व सरस्वती : धन की देवी लक्ष्मी जी फोटो में ज्यादातर खड़ी होती है जो उनके चंचल स्वभाव का प्रतीक है और कहती है कि जब तक इसकी कद्र होगी तब तक ही ठहरेगी वरना तुरंत चल देगी I विद्या की देवी सरस्वती का चित्र हमेशा बैठा होता है क्योंकि सरस्वती या तो किसी पर मेहरबान होती नहीं और एक बार आ जाये तो फिर स्थायी रूप में विराजित होती है I
राम सीता विवाह : भगवान राम नें धनुष को तोड़कर सीता से विवाह किया , धनुष अहंकार का प्रतीक है जो हमेशा तना रहता है और जब भी उससे बाण निकलता है तो किसी के प्राण ही हरता है I यही हमारे जीवन में होता है कि जब तक हमारे अन्दर अहंकार रहेगा, हम किसी के भी प्रति प्रेम, द्या व विश्वास से नहीं जुड़ सकते I भगवान राम ने पहले अहंकार को तोड़ा, फिर सीता से विवाह किया जो शिक्षा देता है कि सुखी व आदर्श जीवन में अहंकार का कोई स्थान नहीं होता I
शिव पार्वती विवाह : माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए लाखों वर्षों तक कठोर तपस्या की , उपवास रखे, मुसीबतें झेली, तब जाकर माता पार्वती का शिव से विवाह हो सका I ऐसा समर्पण, श्रद्धा, विश्वास व प्रेम के कारण हुआ जो आज हर गृहस्थ के लिए आवश्यक है I

08/04/2015

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