Friday, 3 April 2015

धन की प्राप्ति लक्ष्मी रूप में या माया रूप में –डा. शीशपाल हरडू

धन की प्राप्ति लक्ष्मी रूप में या माया रूप में –डा. शीशपाल हरडू
दोस्तों आज मनुष्य का लगाव, आकर्षण और चाहत सिर्फ धन रह गया है, धन न केवल हमारी मुलभुत आवश्यकता की पूर्ति करता है बल्कि यह इज्जत-मान, शान व नाम पर हावी भी हो रहा है और हमारे अहं का पर्याय बन रहा है I भोतिक उन्नति के साथ साथ धन के महत्व को  इतना बढ़ा दिया की आज मनुष्य ने धन को साधन न समझ कर साध्य मान लिया है और साधन जब साध्य बन जाता है तो समाज में अनेको समस्याएं पैदा  हो जाती है I धन दौलत का नशा आदमी के सिर चढ़ जाता है और प्रत्येक दिन अन्य नशों की तरह यह भो और अधिक खुराक की मांग करता है व आदमी इसके बंधन में बंधकर अँधा हो जाता है तथा नैतिकता व अनैतिकता का भेद मिटा डालता है I दुनियां में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो मूलतः स्वभाव से अच्छी या बुरी हो, अच्छी बुरी वस्तु बनती है उसके उपयोग से I वस्तु का सदुपयोग उसको अच्छा व दुरूपयोग उसको बुरा बना देता है, यह प्रयोगकर्ता पर निर्भर करता है की वह उस वस्तु का प्रयोग केसे करता है I सदुपयोग उन्नति में सहायक होता है और दुरूपयोग पतन का कारण I
साधन के रूप में न्याय,ईमानदारी व धर्म के अनुसार धन कमाना बुरा नहीं है और धन के बिना न तो कल गुजरा होता था, न आज होता I जो मनुष्य अपना गुजारा भी नहीं कर सकता , वह दुसरे की सहायता क्या व कैसे कर सकता है I अत: जो धन अपने जीवनयापन के लिए आवश्यक है उसका स्त्रोत विवेक, मेहनत, ईमानदारी व सत्य होना चाहिए I हमारे शास्त्रों ने धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष नामक चार पुरुषार्थ बतलाये है यानि धर्मानुसार आचरण करते हुए अर्थ कमायें, शुभ व धर्म आज्ञानुसार कर्म करें और परम पुरुषार्थ मोक्ष को प्राप्त करे I जब मनुष्य का धन ध्येय बन जाता है तो उसका चित्त धन का ही चिंतन करता है , चिंतन से धन में आशक्ति हो जाती है , आशक्ति कामना को जन्म देती है और कामना जब पूर्ण नहीं होती तब क्रोध आता है ,क्रोध से विवेक नष्ट होत्ता है और विवेक नष्ट होने से मनुष्य का मनुष्यत्व ख़त्म हो जाता है I कर्म ही पुरुषार्थ है और धन की देवी वहीँ रहना पसंद करती है जहाँ पुरुषार्थ हो I
साथियों, एक बात बहुत ही महत्वपूर्ण याद आ गई कि भारतीय दर्शन में धन की देवी लक्ष्मी के दो वाहन उल्लू व गरुड़ बताये गए है जो अन्य किसी भी देवी या देवता के पास नहीं है और इसके पीछे एक ख़ास वजह भी है I जब धन कमाने के हमारे साधन नियमानुकूल, सही, साफ, पाक, पवित्र होते है तो जो लक्ष्मी हमारे घर आती है , वे गरुड़ पर सवार होकर आती है क्योंकि गरुड़ एक शुभ पक्षी माना जाता है और ये धन घर में शुभ व बरकतकारक होता है I जबकि यदि धन गलत तरीके से अनीति व नियमविरुद्ध क्रिया द्वारा कमाया जाता है तो भी लक्ष्मी आती तो है परन्तु आती है उल्लू पर स्वर होकर I उल्लू का सीधा मतलब है की मुर्ख और दिन में न देख पाने वाला, यानि ये धन हमारी बुद्धि भ्रष्ट कर देता है और हम अनैतिक कार्यों में फंस कर या प्राकृतिक बाधा में फंस कर इस तरह कमाया धन बर्बाद हो जाता है I अध्यात्म में धन को लक्ष्मी भी कहते है और माया भी इसलिए जो धन सही जगह, ठीक आवश्यकता में, दान में खर्च होता है वो लक्ष्मी रूप में धन होता है , जबकि जो धन विलासिता में, नशे में, अनैतिक कार्यों में या निरर्थक कार्यों में खर्च होता है वह माया रूप में होता है I
हमें धन का अर्जन नहीं सृजन करना चाहिए , अर्जन में केवल धन कमाने पर ध्यान रहता है उसके तरीके पर नहीं जबकि सृजन  में सकारात्मक व धनात्मक तरीके से धन कमाना होता है I इसलिए यदि हम सच में धन का सुख पूर्वक भोग नहीं उपयोग करना चाहते है तो हमें केवल लाभ की और नहीं बल्कि शुभ और लाभ के साथ धन कमाना और उसका उपयोग करना चाहिए I धन वह शक्ति है जिससे हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तो कर सकते है परन्तु संतुष्टि नहीं प्राप्त कर सकते I

02/04/2015  

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