Tuesday, 14 April 2015

आत्मविस्मृत समाज और हम : डा. शीशपाल हरडू

आत्मविस्मृत समाज और हम : डा. शीशपाल हरडू  
भूलना मानव की सबसे बड़ी कमजोरी है और याद रखना उसकी मज़बूरी I एक कहावत है कि जो सच है उसको याद रखने की जरूरत नहीं रहती और जो झूठ है वो याद रह नहीं सकता I परन्तु फिर भी व्यक्ति आज की बात को भुला कर कल की उधेड़बुन में लग जाता है और उसे विस्मृति नहीं रहती कि कल क्या घटा था I सुखद क्षण व्यक्ति भूल जाता है और दुखद क्षण को भूलना चाहता है I हमारे जीवन में प्रत्येक क्षण कुछ न कुछ घटित अवश्य होता है और वो सब याद रखना न तो संभव होता है और न ही तर्कसंगत I परन्तु ज़िन्दगी के कुछ लम्हें, कुछ पल ऐसे होते है जिनको याद रखना आवश्यक होता है लेकिन भौतिकवादिता की अंधी दौड़ में हम हमारे कुछ खास अहम बातों को भी भूल रहे है I यहाँ तक की आज लोग अपने पूर्वजों को, अपने इतिहास को, अपने समाज भी भूल रहे है, जबकि हमें अपनी विरासत, अपनी पहचान, अपनी शक्ति, अपनी कला को अगर हम याद नहीं रखेंगे तो हम अपना सब कुछ खो देंगे I इतिहास हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है और कुछ सिखने का सबक भी I
विस्मृति राम भक्त हनुमान को भी हो गई थी जब सीता माता की खोज में समुन्द्र लाँघ कर लंका जाने बारे वानर सेना में विचार मंथन चल रहा था तो हनुमानजी एक तरफ चुपचाप खड़े थे तब जामवंत ने हनुमानजी को उनका बल याद करवाया, तब जाकर वे समुन्द्र लाँघ कर सीता माता की खोज करके आये I इसीप्रकार महाभारत के युद्ध के मैदान में अर्जुन को भी विस्मृति हो गई और अपने सारथि बने भगवान श्रीकृष्ण से पूछने लगे कि- मै कौन हूँ और मेरा कर्तव्य क्या है तब  भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश देकर स्मृति करवाई, तभी अर्जुन युद्ध करने को तैयार हुए और तब जाकर धर्म की अधर्म पर विजय संभव हो पाई I
आज हमारा समाज खुद को भुला बैठा है, अपने पूर्वजो को बिसराए बैठा है, अपनी विरासत को खोये बैठा है और अपनी पहचान को गायब कर बैठा है I आज हमारा समाज बिखरा हुआ अलग अलग जगह थोड़ी थोड़ी संख्या में बैठा हुआ है I आज हमारा समाज शिक्षा मे, व्यापार व नोकरी के क्षेत्र पिछड़ा हुआ है I आज हमारे समाज में एकता व सहयोग का अभाव, नशे व आपसी मनमुटाव का प्रभाव है I हम अपनी विरासत को, इतिहास को, पूर्वजों को भुला चुके है I आज हम खुद को ही भूले हुए है और जो समाज आत्मविस्मृति की स्थिति में चला जाता है तो उसकी उन्नति व विकास थम जाता है I इसलिए विस्मृति से स्मृति की अवस्था में लेन हेतु  उसको झंकझोरने, जगाने और अपनी पहचान याद करवाने के लिए ही हरडू मिलन मिशन का गठन किया गया है और अपनी अल्प अवधि में ही समाज को संगठित करने में सफलता पाई है I अब जरुरत है समाज मे शिक्षा का प्रचार प्रसार करने की , नशे व कुरीतियों के खिलाफ मुहीम छेड़ने की, आपसी मतभेद ख़त्म करवाने की, सहयोग व सहकार की भावना पैदा करने की  I
आओ हम सब मिलकर संकल्प ले की विस्मृत समाज की आत्मा को जगाये, कुरीतियों को मिटाए, शिक्षा का दीपक हर आँगन में जलाये, मतभेद भगाए और समाज को शिक्षित, समर्थ, सक्षम, सुदृढ़ व संगठित बनाये I  

14/04/2015 

Monday, 13 April 2015

भगवान गणेश एक आदर्श शिक्षक : डा. शीशपाल हरडू

भगवान गणेश एक आदर्श शिक्षक : डा. शीशपाल हरडू
भगवान गणेश बुद्धि के देवता है इसीलिए कोई भी कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व सबसे पहले गणपति की पूजा की जाती है ताकि बुद्धि व विवेक का कुशलतापूर्वक उपयोग करते हुए कार्य, लक्ष्य, उद्देश्य तथा मंज़िल निर्विघ्न रूप से प्राप्त कर सके I भगवान गणेश ही एकमात्र ऐसे देवता है जो आध्यात्मिक दृष्टि से तो पूज्यनीय, वन्दनीय है ही परन्तु व्यवहारिक जीवन में भी इनका हर अंग, हर रूप हमें कोई न कोई नई शिक्षा देता है और जीवन जीने की कला व सलीका सिखाता है और एक सफल इन्सान की विशेषता बताता है I आइये जाने कि भगवान गणेश हमें क्या क्या शिक्षा दे रहे है :
1.     बड़ा सिर बड़े दिमाग, बड़ी बुद्धि का प्रतीक है क्योंकि आपको सोचने, चिंतन करने, विचारने, याद रखने के लिए हमें हमेशा अपना दिमाग खुला व विस्तृत, तीव्र व तेज़ बुद्धि रखनी होगी और संकीर्ण व छोटी सोच का त्याग करना होगा, तभी हम प्रतिस्पर्धा के युग में सफल हो पाएंगे I
2.      लम्बी सूंड यानि बड़ी नाक हमारी दूरदर्शिता व इज्जत का प्रतीक है जो कहना चाहती है परिस्थितियों व हालात को समय रहते दूर से ही सूंघ कर अनुमान लगाकर उसके अनुसार अपनी योजना अपनी व्युरचना बना कर नुकशान को मुनाफ़े में बदल सके I नाक इज्जत व सम्मान का भी सूचक है I
3.     छोटी व झुकी आँखें हमारे नजरिये व दृष्टिकोण की और इशारा करती है कि हर बात व हर वस्तु पर बारीकी से नजर रखो और किसी को छोटा मत समझो I झुकी आँखे कहती है की कभी भी किसी बात का घमंड मत करो , अभिमान का त्याग करो और हर एक का सम्मान करो I
4.     बड़े कान संदेश दे रहे है की आप अपने से जुड़े हर व्यक्ति की सुनो, क्या पता कौन आपको कोई महत्वपूर्ण सलाह या जानकारी दे दे जो आपके लिए राह आसान बना दे I इसलिए सुनो सब की करो मन की I
5.     बड़ा पेट कह रहा है कि आप अपनी योजनाओं को, अपनी बातों को, अपनी गुप्त व आवश्यक बातों व मुद्दों को अपने पेट में ही रखे , हर किसी के साथ उनको साँझा न करें, गुप्त बातों को पचाना सीखो I
6.     गणपति का वाहन चूहा दो सन्देश दे रहा है कि जो आपके पास है उससे संतोष करो और मितव्ययी बनो और दूसरा ये किबुद्धि कितनी भी बड़ी व तेज़ हो परन्तु उसे चलाने के लिए तर्क की जरूरत होती है, तभी तो गणपति इतने बड़े और वाहन चूहा इतना छोटा मगर अपनी बुद्धि व तर्क से हर कार्य करने में समर्थ I  बुद्धि, अक्ल व ज्ञान वही सफल व कारगर होता है जिसके पास सही व स्पष्ट तर्क हो, हो चाहे छोटा मगर होना सटीक चाहिए I
7.     भगवान गणेश की पत्नियाँ रिद्धि-सिद्धि हमारी कार्यकुशलता व कार्यक्षमता की प्रतीक है I हम अपनी कार्यकुशलता में वृद्धि करे और उसे सहेज कर बरकरार रखें तथा प्रशिक्षण व व्यवहार से अपनी कार्यक्षमता को हमेशा बनाये रखें I
8.     भगवान गणेश के पुत्र योग व क्षेम है जिनका अर्थ योग यानि जोड़ अतार्थ कार्यकुशलता व कार्यक्षमता में वृद्धि करते हुए आर्थिक लाभ को जोड़े और उसमें वृद्धि करें तथा क्षेम का अर्थ सुरक्षित रहने से है यानि जो आर्थिक लाभ कमाया गया है वो सुरक्षित, स्थिर व स्थायी रूप में रखने हेतु बुद्धि का प्रयोग करें I  
13/04/2015





Wednesday, 8 April 2015

हिन्दू देवी देवता और उनसे जुड़ी शिक्षा – डा. शीशपाल हरडू

हिन्दू देवी देवता और उनसे जुड़ी शिक्षा – डा. शीशपाल हरडू
शिव परिवार – भगवान शिव के परिवार में भिन्नता व अनेकता के बावजूद एक आदर्श परिवार का उदाहरण है I इसमें भगवान शिव ख़ुद भभूत लगाये बाघम्बर ओढ़े गले में सर्पों की व मुंड माला धारण किए जटाधारी मस्त लाखों वर्षों तक समाधि लगाये रखने वाले, और नंदी पर सवारी करने वाले I माता पार्वती रूपमती, श्रंगार शौकीन, नारी चरित्र अनुसार जिद्द करने वाली और शेर की सवारी करने वाली I एक बेटा कार्तिकेय अष्टावक्रधारी और करे मोर की सवारी वहीँ दूसरा बेटा गणेश जिसके बड़े बड़े कान, बड़ा पेट, छोटी आँखे, लम्बा नाक और सवारी वो भी चूहे की I घर में कुल चार सदस्य और चारों की पृकृति अलग अलग फिर भी आपस में पूरा सामजस्य I इन चारों के पास पांच पशु या जीव-जंतु यानि चूहा, सांप, मोर, नंदी और शेर तथा इनमें परस्पर शत्रुता का भाव I चूहे का शत्रु सांप, सांप का शत्रु मोर, नंदी का शत्रु शेर फिर भी इनमें से किसी ने भी शत्रुता नहीं निभाई और सब प्रेम से रहे I एक बात और भी महत्वपूर्ण की शिवजी का वाहन नंदी पार्वती के वाहन शेर से कमजोर फिर भी इनमें कोई झगडा नहीं बल्कि सब सहयोग और प्यार से रहते है I यह परिवार हमें शिक्षा देता है की चाहे हमारी पृकृति अलग अलग हो, विचार भिन्न भिन्न हो, परन्तु एक दुसरे की भावना का ख्याल रखते हुए हमें परस्पर प्रेम प्यार व सहयोग के साथ समूह भाव से संयुक्त रहकर ही हम उन्नति कर सकते है I 
भगवान गणेश – भगवान गणेश जिसके बड़े बड़े कान, बड़ा पेट, छोटी आँखे, लम्बा नाक और सवारी वो भी चूहे की I बड़े कान हमें शिक्षा देते है की हमेशा सावधान रहें, हर बात को ध्यान से सुने ; छोटी आँखे हमें बताती है की शुभ व अच्छाई को देखो ; बड़ा पेट कहता है की बात को पचाना सीखो ; लम्बा नाक हमें भविष्य की घटनाओं को पहले से ही भांपना यानि हर घटना का समय रहते पता लगाना और उसका उचित समाधान निकालना सिखाता है वहीँ इतने बड़े शारीर वाले की सवारी चूहा हमें बताता है की जो अपना है और जो अपने पास है उसी से संतुष्ट रहें, मितव्यतता करें I
राम, लक्ष्मण और सीता – भगवान राम एक मर्यादा पुरुषोतम, सर्वहितकारी व शूरवीर राजा, आज्ञाकारी पुत्र, वचन का पालन करने वाला राजा, भाई के लिए प्रेम और सत्य आचरण एवं आदर्श जीवन का प्रतीक I लक्ष्मण जैसा भाई प्रेम और निस्वार्थ त्याग एवं शूरवीरता का विशुद्ध चित्रण I सीता विपरीत परिस्थिति के बावजूद संकट के समय भी पति का साथ निभाने व आदर्श भक्ति की प्रतिमूर्ति I
इंद्रजीत और विभीषण – रावण के दोनों भाई , इंद्रजीत अन्यायी व अधर्मी रावण के पक्ष में राम के विरुद्ध लड़ा परन्तु समाज में इनका सम्मानित नाम जबकि विभीषन सत्य, धर्म व न्याय के लिए अपने भाई रावण को छोड़ कर राम का साथ दिया फिर भी समाज में इनका कोई नाम लेना तो दूर अपने बच्चे का नाम भी नहीं रखते I कहते है की जब विभीषण राम की शरण में जाने लगा तो इंद्रजीत ने उनको रोकते हुए कहा की ‘’भाई मै भी जनता हूँ की रावण अन्यायी व अधर्मी है परन्तु एक क्षत्रिय का धर्म यही कहता है की वो भाई को कभी भी दगा न दे और मुसीबत के समय तो उसका साथ देना एक क्षत्रिय का धर्म है’’ परन्तु विभीषन नहीं माना तो आज भी समाज उसको भाई का द्रोही मानता है और घर का भेदी लंका ढहाए कहावत प्रचलित हुई I भाई द्रोह के कारण आज भी लोग अपने बच्चे का नाम विभीषण नहीं रखते I 
शबरी – शबरी के गुरू जब देवलोक जाने लगे तो शबरी ने अपने गुरू से शंका जाहिर कि की जंगल में इस पर्ण कुटीर में भयानक जंगली जीवों व राक्षसों के मध्य मै अकेली औरत कैसे रह पाऊँगी तो गुरूजी ने कहा की मेरे जाने के बाद आपकी कुटिया में सिवाय भगवान राम के अन्य कोई कदम नहीं रखेगा और एक दिन भगवान राम जरूर आयेंगे I शबरी के यकीन, विश्वास व भरोसे ने भगवान राम को उसकी कुटिया में आकर झूठे बेर भी खाने को मजबूर होना पड़ा I
लक्ष्मी व सरस्वती : धन की देवी लक्ष्मी जी फोटो में ज्यादातर खड़ी होती है जो उनके चंचल स्वभाव का प्रतीक है और कहती है कि जब तक इसकी कद्र होगी तब तक ही ठहरेगी वरना तुरंत चल देगी I विद्या की देवी सरस्वती का चित्र हमेशा बैठा होता है क्योंकि सरस्वती या तो किसी पर मेहरबान होती नहीं और एक बार आ जाये तो फिर स्थायी रूप में विराजित होती है I
राम सीता विवाह : भगवान राम नें धनुष को तोड़कर सीता से विवाह किया , धनुष अहंकार का प्रतीक है जो हमेशा तना रहता है और जब भी उससे बाण निकलता है तो किसी के प्राण ही हरता है I यही हमारे जीवन में होता है कि जब तक हमारे अन्दर अहंकार रहेगा, हम किसी के भी प्रति प्रेम, द्या व विश्वास से नहीं जुड़ सकते I भगवान राम ने पहले अहंकार को तोड़ा, फिर सीता से विवाह किया जो शिक्षा देता है कि सुखी व आदर्श जीवन में अहंकार का कोई स्थान नहीं होता I
शिव पार्वती विवाह : माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए लाखों वर्षों तक कठोर तपस्या की , उपवास रखे, मुसीबतें झेली, तब जाकर माता पार्वती का शिव से विवाह हो सका I ऐसा समर्पण, श्रद्धा, विश्वास व प्रेम के कारण हुआ जो आज हर गृहस्थ के लिए आवश्यक है I

08/04/2015

Friday, 3 April 2015

धन की प्राप्ति लक्ष्मी रूप में या माया रूप में –डा. शीशपाल हरडू

धन की प्राप्ति लक्ष्मी रूप में या माया रूप में –डा. शीशपाल हरडू
दोस्तों आज मनुष्य का लगाव, आकर्षण और चाहत सिर्फ धन रह गया है, धन न केवल हमारी मुलभुत आवश्यकता की पूर्ति करता है बल्कि यह इज्जत-मान, शान व नाम पर हावी भी हो रहा है और हमारे अहं का पर्याय बन रहा है I भोतिक उन्नति के साथ साथ धन के महत्व को  इतना बढ़ा दिया की आज मनुष्य ने धन को साधन न समझ कर साध्य मान लिया है और साधन जब साध्य बन जाता है तो समाज में अनेको समस्याएं पैदा  हो जाती है I धन दौलत का नशा आदमी के सिर चढ़ जाता है और प्रत्येक दिन अन्य नशों की तरह यह भो और अधिक खुराक की मांग करता है व आदमी इसके बंधन में बंधकर अँधा हो जाता है तथा नैतिकता व अनैतिकता का भेद मिटा डालता है I दुनियां में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो मूलतः स्वभाव से अच्छी या बुरी हो, अच्छी बुरी वस्तु बनती है उसके उपयोग से I वस्तु का सदुपयोग उसको अच्छा व दुरूपयोग उसको बुरा बना देता है, यह प्रयोगकर्ता पर निर्भर करता है की वह उस वस्तु का प्रयोग केसे करता है I सदुपयोग उन्नति में सहायक होता है और दुरूपयोग पतन का कारण I
साधन के रूप में न्याय,ईमानदारी व धर्म के अनुसार धन कमाना बुरा नहीं है और धन के बिना न तो कल गुजरा होता था, न आज होता I जो मनुष्य अपना गुजारा भी नहीं कर सकता , वह दुसरे की सहायता क्या व कैसे कर सकता है I अत: जो धन अपने जीवनयापन के लिए आवश्यक है उसका स्त्रोत विवेक, मेहनत, ईमानदारी व सत्य होना चाहिए I हमारे शास्त्रों ने धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष नामक चार पुरुषार्थ बतलाये है यानि धर्मानुसार आचरण करते हुए अर्थ कमायें, शुभ व धर्म आज्ञानुसार कर्म करें और परम पुरुषार्थ मोक्ष को प्राप्त करे I जब मनुष्य का धन ध्येय बन जाता है तो उसका चित्त धन का ही चिंतन करता है , चिंतन से धन में आशक्ति हो जाती है , आशक्ति कामना को जन्म देती है और कामना जब पूर्ण नहीं होती तब क्रोध आता है ,क्रोध से विवेक नष्ट होत्ता है और विवेक नष्ट होने से मनुष्य का मनुष्यत्व ख़त्म हो जाता है I कर्म ही पुरुषार्थ है और धन की देवी वहीँ रहना पसंद करती है जहाँ पुरुषार्थ हो I
साथियों, एक बात बहुत ही महत्वपूर्ण याद आ गई कि भारतीय दर्शन में धन की देवी लक्ष्मी के दो वाहन उल्लू व गरुड़ बताये गए है जो अन्य किसी भी देवी या देवता के पास नहीं है और इसके पीछे एक ख़ास वजह भी है I जब धन कमाने के हमारे साधन नियमानुकूल, सही, साफ, पाक, पवित्र होते है तो जो लक्ष्मी हमारे घर आती है , वे गरुड़ पर सवार होकर आती है क्योंकि गरुड़ एक शुभ पक्षी माना जाता है और ये धन घर में शुभ व बरकतकारक होता है I जबकि यदि धन गलत तरीके से अनीति व नियमविरुद्ध क्रिया द्वारा कमाया जाता है तो भी लक्ष्मी आती तो है परन्तु आती है उल्लू पर स्वर होकर I उल्लू का सीधा मतलब है की मुर्ख और दिन में न देख पाने वाला, यानि ये धन हमारी बुद्धि भ्रष्ट कर देता है और हम अनैतिक कार्यों में फंस कर या प्राकृतिक बाधा में फंस कर इस तरह कमाया धन बर्बाद हो जाता है I अध्यात्म में धन को लक्ष्मी भी कहते है और माया भी इसलिए जो धन सही जगह, ठीक आवश्यकता में, दान में खर्च होता है वो लक्ष्मी रूप में धन होता है , जबकि जो धन विलासिता में, नशे में, अनैतिक कार्यों में या निरर्थक कार्यों में खर्च होता है वह माया रूप में होता है I
हमें धन का अर्जन नहीं सृजन करना चाहिए , अर्जन में केवल धन कमाने पर ध्यान रहता है उसके तरीके पर नहीं जबकि सृजन  में सकारात्मक व धनात्मक तरीके से धन कमाना होता है I इसलिए यदि हम सच में धन का सुख पूर्वक भोग नहीं उपयोग करना चाहते है तो हमें केवल लाभ की और नहीं बल्कि शुभ और लाभ के साथ धन कमाना और उसका उपयोग करना चाहिए I धन वह शक्ति है जिससे हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तो कर सकते है परन्तु संतुष्टि नहीं प्राप्त कर सकते I

02/04/2015