प्रबंध
की जीवन में सार्थकता- डा.शीशपाल हरडू
भूमिका- प्रबंध का सामान्य अर्थ
व्यवस्थित होने या करने से लगाया जाता है, अवसर, साधन सिमित व मांग, चुनौतियां, आवश्यता
असीमित है और उनमें सामजस्य स्थापित करते हुए दूसरों से बेहतर व सार्थक परिणाम
प्राप्त करना ही पबंध है I मनुष्य संवेदनशील, विवेकशील व चिन्तनशील प्राणी है अत:
किसी क्रिया की प्रतिक्रिया क्या होगी, पूर्वंनिर्धारण करके कोई सर्वमान्य
सिद्धांत देना मुश्किल होता है I एक व्यक्ति आज जीने के लिए संघर्ष कर रहा है, कल
सुरक्षा के लिए, फिर सम्मान के लिए तो कभी सहजता व कल्याण के लिए संघर्ष करता नजर
आता है I अति महत्वपूर्ण बात की अवेहलना कर जाता है, वहीँ छोटी सी बात को भार/बोझ मान लेता है I मनुष्य के व्यवहार पर खुद की सोच
के अतिरिक्त उसके परिवार, नाते-रिश्तेदार, समाज में व्याप्त घटनाये भी प्रभावित
करती है और आपने व्यवहार में परिवर्तन व बदलाव लाता है I आज एक तरफ मनुष्य तनाव, अवसाद
व दवाब में जी रहा है वहीँ दूसरी और
प्रतिस्पर्धा भयावह रूप ले रही है ऐसे वातावरण में मानव प्रबंध के लिए सर्वमान्य
सिद्धांत तो नहीं दिए जा सकते परन्तु उसकी
जीवनचर्या को सरल व कार्यक्षमता को
प्रभावी बनाने के लिए मार्गदर्शन तो किया ही जा सकता है I
सामान्य
प्रबंध- मानव
सभ्यता के विकास के साथ बाज़ार का भी विकास हुआ और बाज़ार को नियंत्रण करने व
प्रभावी बनाने के लिए प्रबंधन का भी विकास हुआ I जब हेनरी फेयोल के प्रबंध के
सिद्धांत विकसित नहीं हुए होंगे, टेलर का वैज्ञानिक प्रबंध की भी खोज नहीं हुई
होंगी, ओद्योगिक क्रांति भी नहीं आई थी , परन्तु प्रबंध का अस्तित्व किसी न किसी रूप में अवश्य
रहा है I ओद्योगिक इकाइयों में नहीं, घर-परिवार का प्रत्येक दैनिक कार्य प्रबंध से
ही सम्पन्न होता है बिना प्रबंध के किया गया प्रयास अँधेरे में तीर चलाना मात्र है
I बिना प्रबंध के सामूहिक क्रिया की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती बल्कि व्यक्तिगत
जीवन जीना भी संभव नहीं हो सकता I जब हम नियमबद्ध, क्रमबद्ध और व्यवस्थित तरीके से
काम करते हुए सफलता की सम्भावना को बढ़ाना चाहते है तो हमे प्रबंध की शरण में जाना
ही होगा, बिना प्रबंध सफलता अंधे के हाथ बटेर लगने के समान है I प्रबंध मनुष्य की सभी क्रियाओं में अंतर्व्याप्त
है और इससे बाहर व इसके बिना कुछ भी संभव नहीं है I हमारे जीवन का प्रत्येक कार्य
जैसे उत्पादन, व्यवसाय, शिक्षा, धर्म, राजनीति, सामाजिक उत्थान आदि संगठनों से
बंधे है और मानव अपने लक्ष्य व आवश्यकता की पूर्ति हेतु विभिन्न संस्थाओं पर
निर्भर रहता है अत: प्रबंध ही संगठनों को
उत्पादक, उद्देश्यपूर्ण व कार्यशील बनता है I पबंध ही मानव-शक्ति, सामग्री, मशीन, बाज़ार
व मुद्रा आदि संसाधनों का उचित विदोहन करके लाभभागिता बढाता है I प्रबंध नियोजन, संगठन,उत्प्रेरण, मार्गदर्शन, निर्देशन,
नेतृत्व, पर्यवेक्षण, निर्णयन, सृजन और नियंत्रण की एक प्रक्रिया है I इस
प्रक्रिया से हम न केवल स्वंय कार्य करते है बल्कि अन्य सहयोगी व अधीनस्थों से भी
कार्य वैज्ञानिक ढंग से करवाने में सफल होते है I प्रत्येक कार्य को करने का एक
सर्वोतम ढंग होता है की अवधारणा को स्वीकार करते हुए प्रयोगों व विश्लेषणों के
आधार पर कार्य की सर्वोतम विधि खोजने और उस विधि से कार्य करना व करवाना प्रबंध कहलता
है I
समय के
साथ कार्य प्रबंध- प्रबंध मूलतः संसाधनों का ही किया जाता है और संसाधनों में मानव-शक्ति,
सामग्री, मशीन, बाज़ार व मुद्रा के रूप में प्राप्त है इनमें से केवल मानव-शक्ति ही
संजीव है अन्य सब निर्जीव है और इन निर्जीव संसाधनों का प्रबंध संजीव संसाधन यानि मानव-शक्ति
को ही करना होता है I मानव संसाधन से आशय मानव के समय से होता है और उसका समय खरीद
कर उसे प्रशिक्षित करके उसकी गुणवता तो बधाई जा सकती है परन्तु उसकी कार्यक्षमता
को भविष्य के लिए संरक्षित करके नहीं रख सकते बल्कि उसकी कार्यक्षमता को सही समय
पर, सही स्थान पर, सही निर्देशन के साथ योजनाबद्ध तरीके से लगाकर लाभ लिया जा सकता
है I समय अविरल चलता है, यह न कभी रुका है और न कभी रुकेगा, इसलिए जिस संसाधन पर
हमारा नियंत्रण ही नहीं है उसका हम प्रत्यक्ष तौर पर प्रबंध भी नहीं कर सकते I हाँ,
समय अपनी गति से चलता है अत: समय की गति
के साथ हम अपने प्रयासों यानि किए जाने वाले कार्यों का प्रबंध कर सकते है I समय
पर हमारा नियंत्रण नहीं है परन्तु हम कब क्या कार्य करें इस पर हमारा नियंत्रण है , अत: स्वंय पर नियंत्रण करके ही हम
किए जाने वाले कार्यों व प्रयासों का सही व उचित प्रबंध करके समय का सदुपयोग कर
सकते है I हमें इस वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए की समय पर नियंत्रण सम्भव
नहीं है अत: इसका प्रत्यक्ष प्रबंध भी सम्भव नहीं हो सकता I इसलिए हम अपने संसाधनों, कार्यों व प्रयासों का प्रबंध करके ही अपने उद्देश्यों, लक्ष्यों व मंज़िल को प्राप्त कर सकते है I हमारा समय के साथ कार्यों व प्रयासों का समन्वय
ही कार्य का प्रबंध कहलाता है जिसे कुछ
लोग समय प्रबंध भी कह देते है I
जीवन
प्रबंध-संसार
के सब प्रबंध सीख लिए मगर जीवन का प्रबंध शेष राह गया जबकि मानव के लिए जीवन से
महत्वपूर्ण अन्य कुछ भी नहीं, यदि जीवन है तो सब कुछ है I जीवन मूल्यों से पहले
जीवन का प्रबंध सही व उचित होना आवश्यक है अन्यथा जीवन को व्यर्थ गंवाने का कोई
ओचित्य नहीं I यदि जीवन में निराशा, नीरसता, निष्फलता है तो इसके पीछे हमारे कु-प्रबंध
का ही हाथ है क्योकि सफलता में कर्म की प्रधानता रहती है और हम नियोजित कर्म के अभाव
में असफल होकर किस्मत को अन्यथा दोष देते है I प्रबंध कहिए या व्यवस्था, एक की बात
है और जीवन में सु-प्रबंध मानव का अति विशिष्ट गुण है तथा इसे समाज में प्रचलित
करना चाहिए Iजीवन को व्यवस्थित करना बहुत ही कथन काम है मगर सफल जीवन जीने के लिए
उतना ही आवश्यक भी है I आज विज्ञानं ने जितनी उन्नति की है उससे कहीं ज्यादा
चुनौतियां भी खड़ी कर ली है और एक तरफ जीवन सुगम, सरल व आसान हुआ है वहीँ आलस्य,
अवसाद, तनाव व अकेलापन की समस्या भी पैदा हो रही है I भौतिकवादिता व
प्रतिस्पर्द्धा के युग में युवावर्ग तरक्की व उन्नति की चाह में अपनी दिनचर्या को
बिगाड़ रहा है व नई नई चुनौतिओं को आमंत्रण दे रहा है I विज्ञानं की सहायता ले,
विकास करें,नई तकनीक अपनाएं मगर अपनी मौलिक अवधारणा व प्राकृतिक मूल्यों की कीमत
पर नहीं I माना विकास के साथ विनाश भी होता है परन्तु हमे अपना जीवन प्रबंध या व्यवस्था
इसप्रकार बनानी चाहिए की विकास अधिकतम व विनाश न्यूनतम हो, प्रकृति के सानिध्य में
रहकर संसाधनों का जागरूकता के साथ प्रयोग करते हुए जीवन मूल्यों को सुगम, सरल, सहज
व सफल बनाना होगा I
स्वंय
प्रबंध-
दुनिया में एक देन ऐसी है जिसे हर कोई देना चाहता है, लेना कोई नहीं और वो है प्रवचन, उपदेश या आदेश I हम अब तक
दुसरों के बारे में ही बातें करते आये है स्वंय के विषय में कभी कुछ नहीं बोला I
प्रबंध में भी हम दूसरों से कार्य करवाना को ही शामिल करते रहे है या दूसरों को ही
व्यवस्थित होने का उपदेश देते रहे है I अब इस विचर में परिवर्तन आ रहा है और मानव स्वंय
को भी प्रबंध का अंग मानने लगा है और स्वंय को व्यवस्थित की बात करने लगा है I
वास्तविकता भी यही है की हम दूसरों की अपेक्षा स्वंय को आसानी से बदल सकते है,
परिस्थितिनुसार परिवर्तित कर सकते है और अन्य जन को अभिप्रेरित करने के लिए स्वंय
अपने आप का अभिप्रेरण आवश्यक है I स्वंय का प्रबंध व्यक्तिगत जीवन के लिए ही नहीं
बल्कि सार्वजनिक जीवन के लिए भी आवश्यक है क्योंकि हमारी सफलता हमारे सहयोगिओं को
भी अभिप्रेरित करती है I अत: जीवन में सफल व कामयाब होने के लिए उपदेश की अपेक्षा
अनुकरण व अनुशरण अधिक प्रभावी व कारगर सिद्ध होता है
निष्कर्ष- प्रबंधित या व्यवस्थित ढंग
से किया गया प्रयास सफलता के समांतर होता है और योजनाबद्ध, व्युरचना के साथ
संसाधनों का समुचित व क्षमतानुसार उपयोग करते हुए कार्य का प्रारम्भ निश्चित व सिद्ध
फल के साथ अंत की और ले जाता है I आज पीछे देखने का वक्त नहीं है बल्कि अतीत के सबक
को साथ लेकर आज अपना सम्पूर्ण देकर कल को सुखद, सुंदर व सफल बनाने का है I आज आदेश
या निर्देश से नहीं बल्कि नेतृत्व व अग्रणीयता प्रदान करते हुए संसाधनों को प्रयास
से परिणाम में परिवर्तित करने का प्रबंध करने की जरूरत है तभी हम इच्छित व स्थायी
मंज़िल हासिल कर पाएंगे I
22/03/2015