Wednesday, 31 December 2014

जुझार शब्द का शाब्दिक अर्थ

जुझार शब्द का शाब्दिक अर्थ :
1.     वि. (हिं. जुज्झ+आर I प्रत्यय I) योद्धा, लड़ाका : पुं. युद्ध , लड़ाई जैसे का जानसि कस होइ जुझारा – जायसी और आंग्ल भाषा में – A Warrior यानि एक योद्धा वहीँ जुझाऊ विशेषण (Adjective) के रूप में वि. (हिं.जूझ+आऊ I प्रत्यय I) अर्थ प्राय: जूझता या लड़ता रहने वाला; लड़ाका ; युद्ध या लड़ाई के उपयोग में आने वाला :युद्ध सम्बन्धी जैसे जुझाऊ जहाज यानि Hard Worker, Figher, Berserk और स्त्री. के रूप में जूझने की क्रिया या भाव : युद्ध , लड़ाई (यह केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है
2.     जुझार शब्द में अक्षरों की संख्या व्यंजन मात्रा सहित पांच है , इस शब्द का प्रयोग हिंदी में विशेषण के रूप में किया जाता है I यह एक संयुक्त पद है जिसके अंत में प्रत्यय जुड़ा हुआ है जिसकी उत्पत्ति हिंदी भाषा से हुई है I
3.     जुझार होना उन बहादुरों के लिए प्रयोग किया जाता है  जो युद्ध में गर्दन कटने के बाद भी पांच-पांच कोस तक बिना सर के  लड़कर दुश्मनों का नाश करते है I
4.     हमारे क्षत्रिय समाज में एक नहीं अनेको नामी और गुमनामी जुझार दिए है; जिस समाज में शिक्षा, संख्या ,समृधि और जागरूकता ज्यादा रही या जो प्रभावशाली रहा उस समाज के जुझार का नाम और इतिहास दोनों का नाम भी हुआ और पहचान भी हुई , इतिहासकारों ने भी अपनी कलम में जगह दी परन्तु जो समाज शिक्षा, संख्या ,समृधि और जागरूकता में पिछड़े रहे उस समाज के वीर जुझार का नाम वक्त की धुल के नीचे दब कर रह गया जबकि महापुरुषो ,वीरों , शूरवीरों और जुझारों को किसी एक जाति, समाज ,प्रदेश या देश की सीमा में नहीं बांधा जाता ये सबके सिरमोर होते है I समाज की सीमा शूरवीरो को बांध नहीं सकती परन्तु सामाजिक व राजनेतिक ढांचे में इतिहास केवल ताकतवर का ही लिखा जाता है और यही हमारी विडंबना है I
5.     हमारे हरडू गोत्र के जुझारजी दादा की देवली और कुता झाड़ जो गाँव घंटियाल में है के बारे में हमारे ढाढ़ी (मिरासी) द्वारा उपलब्ध जानकारी अनुसार 1444 में गाँव घींटाळ जो आज घंटियाल है  बिदावत राजपूतो द्वारा गायों को पानी पिलाने से रोकने और हरडू परिवारों के साथ लूटपात करने के विरुद्ध लड़ते हुए राऊजी ,लांछा बाई और एक कुता काम आया I गाँव घंटियाल में आज भी लांछा तलाई , कुता झाड़ और जुझारजी दादा समेत चार देवली है इन देवलियो पर लिखी लिपि सामान्य जनमानस पढ़ नहीं पता जिसे पुराणिक एवम पुरातत्व विभाग से पढवाने बारे प्रयास जारी है , इसीप्रकार गाँव उमादेसर में 1519 में बनी पांचा जी की घोड़े सहित छतरी पर भी लिखा शिलालेख पुराणिक एवम पुरातत्व विभाग से पढवाने बारे प्रयास जारी हैI पुराणिक एवम पुरातत्व विभाग से शिलालेख  पढवाने , बही भाट (राव) और अन्य पुराणिक व ऐतिहासिक दस्तावेज जुटा कर हम पूर्वजो का इतिहास तथ्यों सहित इकट्ठा कर रहे है

आप सभी जागरूक समर्पित हरडू भाइयों दे निवेदन है की इस पावन कार्य में अपना अमूल्य सहयोग प्रदान करे और अपना गोरवशाली इतिहास को लिपिबद्ध करवाए I 

Tuesday, 30 December 2014

जाटों के विषय में की गई महापुरुषों टिप्पणियाँ


1.         यात्री अल बेरूनी - इतिहासकार - मथुरा में वासुदेव से कंस की बहन से कृष्ण का जन्म हुआ । यह परिवार जाट था और गाय पालने का कार्य करता था ।
2.        इतिहासकार डॉ० रणजीतसिंह - जाट तो उन योद्धाओं के वंशज हैं जो एक हाथ में रोटी और दूसरे हाथ में शत्रु का खून से सना हुआ मुण्ड थामते रहे ।
3.        इतिहासकार डॉ० धर्मचन्द्र विद्यालंकार - आज जाटों का दुर्भाग्य है कि सारे संसार की संस्कृति को झकझोर कर देने वाले जाट आज अपनी ही संस्कृति को भूल रहे हैं ।
4.        इतिहासकार डॉ० गिरीशचन्द्र द्विवेदी - मेरा निष्कर्ष है कि जाट संभवतः प्राचीन सिंध तथा पंजाब के वैदिक वंशज प्रसिद्ध लोकतान्त्रिक लोगों की संतान हैं । ये लोग महाभारत के युद्ध में भी विख्यात थे और आज भी हैं ।
5.        स्वामी दयानन्द महाराज आर्यसमाज के संस्थापक ने जाट को जाट देवता कहकर अपने प्रसिद्ध ग्रंथ सत्यार्थप्रकाश में सम्बोधन किया है । देवता का अर्थ है देनेवाला । उन्होंने कहा कि संसार में जाट जैसे पुरुष हों तो ठग रोने लग जाएं ।
6.        प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ तथा हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस के संस्थापक महामहिम मदन मोहन मालवीय ने कहा - जाट जाति हमारे राष्ट्र की रीढ़ है । भारत माता को इस वीरजाति से बड़ी आशाएँ हैं । भारत का भविष्य जाट जाति पर निर्भर है ।
7.        दीनबन्धु सर छोटूराम ने कहा - हे ईश्वर, जब भी कभी मुझे दोबारा से इंसान जाति में जन्म दे तो मुझे इसी महान् जाट जाति के जाट के घर जन्म देना ।
8.        कर्नल जेम्स टॉड राजस्थान इतिहास के रचयिता । (i): उत्तरी भारत में आज जो जाट किसान खेती करते पाये जाते हैं ये उन्हीं जाटों के वंशज हैं जिन्होंने एक समय मध्य एशिया और यूरोप को हिलाकर रख दिया था । (ii): राजस्थान में राजपूतों का राज आने से पहले जाटों का राज था । (iii): युद्ध के मैदान में जाटों को अंग्रेज पराजित नहीं कर सके । (iv): ईसा से 500 वर्ष पूर्व जाटों के नेता ओडिन ने स्कैण्डेनेविया में प्रवेश किया। (v): एक समय राजपूत जाटों को खिराज (टैक्स) देते थे ।
9.        यूनानी इतिहासकार हैरोडोटस ने लिखा है (i) There was no nation in the world equal to the jats in bravery provided they had unity अर्थात्- संसार में जाटों जैसा बहादुर कोई नहीं बशर्ते इनमें एकता हो । (यह इस प्रसिद्ध यूनानी इतिहासकार ने लगभग 2500 वर्ष पूर्व में कहा था । इन दो लाइनों में बहुत कुछ है । पाठक कृपया इसे फिर एक बार पढें । यह जाटों के लिए मूलमंत्र भी है लेखक ) (ii) जाट बहादुर रानी तोमरिश ने प्रशिया के महान राजा सायरस को धूल चटाई थी । (iii) जाटों ने कभी निहत्थों पर वार नहीं किया ।
10.     महान् सम्राट् सिकन्दर जब जाटों के बार-बार आक्रमणों से तंग आकर वापिस लौटने लगे तो कहा- इन खतरनाक जाटों से बचो ।
11.     हमलावर तैमूरलंग ने कहा - जाट एक बहुत ही ताकतवर जाति है, शत्रु पर टिड्डियों की तरह टूट पड़ती है, इन्होंने मुसलमानों के हृदय में भय उत्पन्न कर दिया।
12.     हमलावर अहमदशाह अब्दाली ने कहा - जितनी बार मैंने भारत पर आक्रमण किया, पंजाब में खतरनाक जाटों ने मेरा मुकाबला किया । आगरा, मथुरा व भरतपुर के जाट तो नुकीले काटों की तरह हैं ।
13.     एक प्रसिद्ध अंग्रेज मि. नेशफील्ड ने कहा - जाट एक बुद्धिमान् और ईमानदार जाति है ।
14.     इतिहासकार सी.वी. वैद ने लिखा है - जाट जाति ने अपनी लड़ाकू प्रवृत्ति को अभी तक कायम रखा है । (जाटों को इस प्रवृत्ति को छोड़ना भी नहीं चाहिए, यही भविष्य में बुरे वक्त में काम भी आयेगी - लेखक)
15.     भारतीय इतिहासकार शिवदास गुप्ता - जाटों ने तिब्बत,यूनान, अरब, ईरान, तुर्कीस्तान, जर्मनी, साईबेरिया, स्कैण्डिनोविया, इंग्लैंड, ग्रीक, रोम व मिश्र आदि में कुशलता, दृढ़ता और साहस के साथ राज किया । और वहाँ की भूमि को विकासवादी उत्पादन के योग्य बनाया था । (प्राचीन भारत के उपनिवेश पत्रिका अंक 4.5 1976)
16.     हर्षि पाणिनि के धातुपाठ (अष्टाध्यायी) में - जट झट संघाते - अर्थात् जाट जल्दी से संघ बनाते हैं । (प्राचीनकाल में खेती व लड़ाई का कार्य अकेले व्यक्ति का कार्य नहीं था इसलिए यह जाटों का एक स्वाभाविक गुण बन गया - लेखक)
17.     महर्षि यास्क - निरुक्त में - जागर्ति इति जाट्यम् - जो जागरूक होते हैं वे जाट कहलाते हैं । जटायते इति जाट्यम् - जो जटांए रखते हैं वे जाट कहलाते हैं ।
18.     दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार पर जर्मन जनरल रोमेल ने कहा- काश, जाट सेना मेरे साथ होती । (वैसे जाट उनके साथ भी थे, लेकिन सहयोगी देशों की सेना की तुलना में बहुत कम थे - लेखक)
19.     सुप्रसिद्ध अंग्रेज योद्धा जनरल एफ.एस. यांग - जाट सच्चे क्षत्रिय हैं । ये बहादुरी के साथ-साथ सच्चे, ईमानदार और बात के धनी हैं ।
20.     महाराजा कृष्णसिंह भरतपुर नरेश ने सन् 1925 में पुष्कर में कहा - मुझे इस बात पर अभिमान है कि मेरा जन्म संसार की एक महान् और बहादुर जाति में हुआ ।
21.     महाराजा उदयभानुसिंह धोलपुर नरेश ने सन् 1930 में कहा- मुझे पूरा अभिमान है कि मेरा जन्म उस महान् जाट जाति में हुआ जो सदा बहादुर, उन्नत एवं उदार विचारों वाली है । मैं अपनी प्यारी जाति की जितनी भी सेवा करूँगा उतना ही मुझे सच्चा आनन्द आयेगा ।
22.     डॉ. विटरेशन ने कहा - जाटों में चालाकी और धूर्तता,योग्यता की अपेक्षा बहुत कम होती है ।
23.     मेजर जनरल सर जॉन स्टॉन (मणिपुर रजिडेंट) ने अपने एक जाट रक्षक के बारे में कहा था - ये जाट लोग पता नहीं किस मिट्टी से बने हैं, थकना तो जानते ही नहीं ।
24.     अंग्रेज हर प्रकार की कोशिशों के बावजूद चार महीने लड़ाई लड़कर भी भरतपुर को विजय नहीं कर पाये तो लार्ड लेकेक ने लिखा है - हमारी स्थिति यह है कि मार करने वाली सभी तोपें बेकार हो गई हैं और भारी गोलियाँ पूर्णतः समाप्त हो गई हैं । हमारे एक तिहाई अधिकारी व सैनिक मारे जा चुके हैं । जाटों को जीतना असम्भव लगता है । उस समय वहाँ की जनता में यह दोहा गाया जाता था- यही भरतपुर दुर्ग है, दूसह दीह भयंकार | जहाँ जटन के छोकरे, दीह सुभट पछार ||
25.     बूंदी रियासत के महाकवि ने महाराजा सूरजमल के बारे में एक बार यह दोहा गाया था - सहयो भले ही जटनी जाय अरिष्ट अरिष्ट | जापर तस रविमल्ल हुवे आमेरन को इष्ट || अर्थात् जाटनी की प्रसव पीड़ा बेकार नहीं गई, उसने ऐसे प्रतापी राजा तक को जन्म दिया जिसने आमेर व जयपुर वालों की भी रक्षा की (यह बात महाराजा सूरजमल के बारे में कही गई थी जब उन्होंने आमेर व जयपुर राजपूत राजाओं की रक्षा की) ।
26.     इतिहासकार डॉ० जे. एन. सरकार ने सूरजमल के बारे में लिखा है - यह जाटवंश का अफलातून राजा था ।
27.     इतिहासकार डी.सी. वर्मा:- महाराजा सूरजमल जाटों के प्लेटो थे।
28.     बादशाह आलमगीर द्वितीय ने महाराजा सूरजमल के बारे में अब्दाली को लिखा था - जाट जाति जो भारत में रहती है, वह और उसका राजा इतना शक्तिशाली हो गया है कि उसकी खुली खुलती है और बंधी बंधती है ।
29.     कर्नल अल्कोट - हमें यह कहने का अधिकार है कि 4000 ईसा पूर्व भारत से आने वाले जाटों ने ही मिश्र (इजिप्ट) का निर्माण किया ।
30.     यूरोपीयन इतिहासकार मि० टसीटस ने लिखा है - जर्मन लोगों को प्रातः उठकर स्नान करने की आदत जाटों ने डाली । घोड़ों की पूजा भी जाटों ने स्थानीय जर्मन लोगों को सिखलाई । घोड़ों की सवारी जाटों की मनपसंद सवारी है ।
31.     तैमूर लंग - घोड़े के बगैर जाट, बगैर शक्ति का हो जाता है । (हमें याद है आज से लगभग 50 वर्ष पहले तक हर गाँव में अनेक घोडे, घोड़ियाँ जाटों के घरों में होती थीं । अब भी पंजाब व हरयाणा में जाटों के अपने घोड़े पालने के फार्म हैं - लेखक)
32.     भारतीय सेना के ले० जनरल के. पी. कैण्डेय ने सन् 1971 के युद्ध के बाद कहा था - अगर जाट न होते तो फाजिल्का का भारत के मानचित्र में नामोनिशान न रहता
33.     इसी लड़ाई (सन् 1971) के बाद एक पाकिस्तानी मेजर जनरल ने कहा था - चौथी जाट बटालियन का आक्रमण भयंकर था जिसे रोकना उसकी सेना के बस की बात नहीं रही । (पूर्व कप्तान हवासिंह डागर गांव कमोद जिला भिवानी (हरयाणा) जो 4 बटालियन की इस लड़ाई में थे, ने बतलाया कि लड़ाई से पहले बटालियन कमाण्डर ने भरतपुर के जाटों का इतिहास दोहराया था जिसमें जाट मुगलों का सिहांसन और लाल किले के किवाड़ तक उखाड़ ले गये थे । पाकिस्तानी अफसर मेजर जनरल मुकीम खान पाकिस्तानी दसवें डिवीजन के कमांडर थे ।)
34.     भूतपूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन ने जाट सेण्टर बरेली में भाषण दिया - जाटों का इतिहास भारत का इतिहास है और जाट रेजिमेंट का इतिहास भारतीय सेना का इतिहास है । पश्चिम में फ्रांस से पूर्व में चीन तक जाट बलवान्-जय भगवान्का रणघोष गूंजता रहा है ।
35.     विख्यात पत्रकार खुशवन्तसिंह ने लिखा है - (i) "The Jat was born worker and warrior. He tilled his land with his sword girded round his waist. He fought more battles for the defence for his homestead than other Khashtriyas" अर्थात् जाट जन्म से ही कर्मयोगी तथा लड़ाकू रहा है जो हल चलाते समय अपनी कमर से तलवार बांध कर रखता था। किसी भी अन्य क्षत्रिय से उसने मातृभूमि की ज्यादा रक्षा की है । (ii) पंचायती संस्था जाटों की देन है और हर जाटों का गांव एक छोटा गणतन्त्र है ।
36.     जब 25 दिसम्बर 1763 को जाट प्रतापी राजा सूरजमल शाहदरा में धोखे से मारे गये तो मुगलों को विश्वास ही नहीं हुआ और बादशाह शाहआलम द्वितीय ने कहा - जाट मरा तब जानिये जब तेरहवीं हो जाये । (यह बात विद्वान् कुर्क ने भी कही थी ।)
37.     एक बार अलाउद्दीन ने देहली के कोतवाल से कहा था - इन जाटों को नहीं छेड़ना चाहिए । ये बहादुर लोग ततैये के छत्ते की तरह हैं, एक बार छिड़ने पर पीछा नहीं छोड़ते हैं ।
38.     इतिहासकार मो० इलियट ने लिखा है - जाट वीर जाति सदैव से एकतंत्री शासन सत्ता की विरोधी रही है तथा ये प्रजातंत्री हैं ।
39.     संत कवि गरीबदास - जाट सोई पांचों झटकै, खासी मन ज्यों निशदिन अटकै । (जो पाँचों इन्द्रियों का दमन करके, बुरे संकल्पों से दूर रहकर भक्ति करे, वास्तव में जाट है ।
40.     महान् इतिहासकार कालिकारंजन कानूनगो - (क) एक जाट वही करता है जो वह ठीक समझता है । (इसी कारण जाट अधिकारियों को अपने उच्च अधिकारियों से अनबन का सामना करना पड़ता है - लेखक) (ख) जाट एक ऐसी जाति है जो इतनी अधिक व्यापक और संख्या की दृष्टि से इतनी अधिक है कि उसे एक राष्ट्र की संज्ञा प्रदान की जा सकती है । (ग) ऐतिहासिक काल से जाट बिरादरी हिन्दू समाज के अत्याचारों से भागकर निकलने वाले लोगों को शरण देती आई, उसने दलितों और अछूतों को ऊपर उठाया है । उनको समाज में सम्मानित स्थान प्रदान कराया है। (लेकिन ब्राह्मणवाद तो यह प्रचार करता रहा कि शूद्र वर्ग का शोषण जाटों ने किया - लेखक) (घ) हिन्दुओं की तीनों बड़ी जातियों में जाट कौम वर्तमान में सबसे बेहतर पुराने आर्य हैं।
41.     महान् इतिहासकार ठाकुर देशराज - जाटों को मुगलों ने परखा, पठानों ने इनकी चासनी ली, अंग्रेजों ने पैंतरे देखे और इन्होंने फ्रांस एवं जर्मनी की भूमि पर बाहदुरी दिखाकर सिद्ध किया कि जाट महान् क्षत्रिय हैं ।
42.     पं० इन्द्र विद्यावाचस्पति- जाटों को प्रेम से वश में करना जैसा सरल है, आँख दिखाकर दबाना उतना ही कठिन है ।
43.     कवि शिवकुमार प्रेमी - जाट जाट को मारता यही है भारी खोट || ये सारे मिल जायें तो अजेय इनका कोट || (कोट का अर्थ किला) इसीलिए तो कहा जाता है - जाटड़ा और काटड़ा अपने को मारता है । (लेखक)
44.     विद्वान् विलियम क्रूक - (i) जाट विभिन्न धार्मिक संगठनों व मतों के अनुयायी होने पर भी जातीय अभिमान से ओतप्रोत हैं । भूमि के सफल जोता, क्रान्तिकारी, मेहनती जमीदार तथा युद्ध योद्धा हैं । (इसीलिए तो जाटों या जट्टों के लड़के अपनी गाड़ियों के पीछे लिखवाते हैं - जट्ट दी गड्डी’, ‘जाट की सवारी’ ‘जहाँ जाट वहाँ ठाठ’, ‘जाट के ठाठतथा ‘Jat Boy’ आदि-आदि - लेखक । (ii) स्पेन, गाल, जटलैण्ड, स्काटलैण्ड और रोम पर जाटों ने फतेह कर बस्तियां बसाई ।
45.     विद्वान् ए.एच. बिगले - जाट शब्द की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है । यह ऋग्वेद, पुराण और मनुस्मृति आदि अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थों से स्वतः सिद्ध है । यह तो वह वृक्ष है जिससे समय-समय पर जातियों की उत्पनि हुई ।
46.     विद्वान् कनिंघम - प्रायः देखा गया है कि जाट के मुकाबले राजपूत विलासप्रिय, भूस्वामी गुजर और मीणा सुस्त अथवा गरीब, कास्तकार तथा पशुपालन के स्वाभाविक शोकीन, पशु चराने में सिद्धहस्त हैं, जबकि जाट मेहनती जमीदार तथा पशुपालक हैं ।
47.     . विख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार - जाट समाज में जाटनियां परिश्रम करना अपना राष्ट्रीय धर्म समझती हैं, इसलिए वे सदैव जाटों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करती हैं । वे आलसी जीवन के प्रति मोह नहीं रखती ।
48.      प्राचीन इतिहासकार मनूची - जाटनियां राजनैतिक रंगमंच पर समान रूप से उत्तरदायित्व निभाती हैं । खेत में व रणक्षेत्र में अपने पति का साथ देती हैं और आपातकाल के समय अपने धर्म की रक्षा में प्रोणोर्त्सग (प्राणत्याग) करना अपना पवित्र धर्म समझती हैं
49.     महान् इतिहासकार उपेन्द्रनाथ शर्मा - जाट जाति करोड़ों की संख्या में प्रगितिशील उत्पादक और राष्ट्ररक्षक सैनिक के रूप में विशाल भूखण्ड पर बसी हुई है। इनकी उत्पदाक भूमि स्वयं एक विशाल राष्ट्र का प्रतीक है ।
50.      विद्वान् सर डारलिंग - ‘‘सारे भारत में जाटों से अच्छी ऐसी कोई जाति नहीं है जिसके सदस्य एक साथ कर्मठ किसान और जीवंत जवान हों।’’
51.      महान् इतिहासकार सर हर्बट रिसले - जाट और राजपूत ही वैदिक आर्यों के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं ।
52.     फील्ड मार्शल माउंट गुमरी - “Jat is true soldier. I will be happy to die with dignity amongst Jats Regt. My soul will be bless with peace.” अर्थात् ‘‘जाट एक सच्चा सैनिक है । मुझे खुशी होगी यदि मैं जाटों के बीच रहकर इज्जत से मर जांऊ ताकि मेरी आत्मा को शान्ति मिल सके
53.      अंग्रेज प्रमुख जनरल ओचिनलैक (बाद में फील्ड मार्शल) - ‘‘If things looked back and danger threatened I would ask nothing better than to have Jats beside me in the face of the enemy” अर्थात हालात बिगड़ते हैं और खतरा आता है तो जाटों को साथ रखने से बेहतर और कुछ नहीं होगा ताकि मैं दुश्मन से लड़ सकूं ।
54.      क्रान्तिदर्शी राजा महेन्द्रप्रताप - हमारी जाति बहादुर है । देश के लिए समर्पित कौम है । चाहे खेत हो या सीमा । धरतीपुत्र जाटों पर मुझे नाज़ है ।
55.     पं. जवाहरलाल नेहरू - ‘‘दिल्ली के आसपास चारों ओर जाट एक ऐसी महान् बहादुर कौम बसती है, वह यदि आपस में मिल जाये और चाहे तो दिल्ली पर कब्जा कर सकती है ।” (यह पंडित नेहरू ने सन् 1947 से पहले कहा था, लेकिन पंडित जी देश आजाद होने के बाद जाटों को भूल गये और उन्होंने अपने जीते जी कभी किसी हिन्दू जाट को केन्द्रीय सरकार में किसी भी मंत्री पद पर फटकने नहीं दिया - लेखक)
56.      स्वामी ओमानन्द सरस्वती तथा वेदव्रत्त शास्त्री - (देशभक्तों के बलिदान ग्रंथ में) - ‘‘ईरान से लेकर इलाहाबाद तक जाटों के वीरत्व व बलिदानों का इतिहास चप्पे-चप्पे पर बिखरा पड़ा है । क्या कभी कोई माई का लाल इनका संग्रह कर पाएगा ? काश ! जाट तलवार की तरह कलम का भी धनी होता।
57.      डॉ० बी.एस. दहिया ने अपनी पुस्तक Jats- The Ancient Rulers अर्थात्- ‘‘जाट प्राचीन शासक हैं’’ में लिखा है -‘‘There is no battle worth its name in The World History where the Jat Blood did not irrigate The Mother Earth’’ अर्थात्- ‘‘विश्व में ऐसी कोई भी लड़ाई नहीं हुई, जिसमें जाटों ने अपनी मातृभूमि के लिए खून न बहाया हो ।” (काश ! यह देश और इस देश के इतिहासकार इसे समझ पाते- लेखक)
58.     विद्वान् मोरेरीसन - “The Jats and Rajputs of the Doab are descendents of the late Aryans” अर्थात् दोआबा के जाट और राजपूत आर्यों के वंशज हैं।
59.      विद्वान् नेशफिल्ड - जाटों से राजपूत हो सकते हैं परन्तु राजपूतों से जाट कभी नहीं हो सकते हैं ।
60.      प्रो० मैक्समूलर - सारे भूमण्डल पर जाट रहते हैं और जर्मनी इन्हीं आर्य वीरों की भूमि है ।
61.     इतिहासकार बलिदबिन अब्दुल मलिक - अरब की हिफाजत के लिए हमने जाटों का सहारा लिया ।
62.      सुल्तान मोहम्मद - जाट कौम का डर मेरे ख्वाब में भी रहता है । इन्होंने मुझे कभी खिराज नहीं दिया ।
63.      प्रो० बी. एस. ढिल्लों - मोहम्मद गजनी ने जाटों को खुश करने के लिए साहू जाटों से अपनी बहिन का विवाह किया था ।” (पुस्तक - हिस्ट्री एण्ड स्टडी ऑफ दी जाट’- मूलस्रोत - सर ए. कनिंघम) ।
64.     . प्रो० पी.टी. ग्रीव - जाट केवल भगवान के सामने ही अपने घुटनों को झुकाता है क्योंकि वह नेता होता है, अनुयायी नहीं ।
65.      विद्वान् टॉलबोट राईस -याद रहे चीन ने 1500 मील लम्बी और 35 फिट ऊंची दीवार जाटों से बचने के लिए ही बनाई थी ।
66.     इतिहासकार जे.सी. मोर - जाट वास्तव में हिन्दुओं की जाति नहीं है, यह एक नस्ल है।
67.     विद्वान् डॉ० वाडिल - गुट, गोट, गुट्टी, गुट्टा, गोटी और गोथ आदि जाटों के नाम के ही शाब्दिक उच्चारण के विभिन्न रूप हैं, जो मध्यपूर्व में महान् शासक हुए हैं ।
68.      विद्वान् जनरल सर मैकमन - (i) जाट बहुत ताकतवर और कठिन परिश्रमी किसान हैं जो हाथ में हल लेकर पैदा होता है । (ii) जाटों ने हमेशा अपनी लड़ने की योग्यता को कायम रखा, इसी कारण प्रथम विश्वयुद्ध में केवल जाटों की छटी रेजीमेंट को रॉयल की उपाधि मिली ।
69.     विद्वान् मेजर बरस्टो - जाटों की विशेषता है कि वे अपने गोत्र में शादी नहीं करते चाहे वह हिन्दू जाट हो या पंजाबी । क्योंकि जाट इसे व्यभिचार मानते हैं ।
70.      डॉ० रिस्ले - “When Jat runs wild it needs God to hold him back अर्थात् यदि जाट बिगड़ जाए तो उसे भगवान ही काबू कर सकता है ।
71.     रूसी इतिहासकार के.एम. सेफकुदरात ने अगस्त 1964 में मास्को में एक भाषण दिया जो भारतीय समाचार पत्रों में भी छपा था और उसने कहा “I studied the histories of various sects before I visited India in 1957. It was found that Jats live in an area extending from India to Central Asia and Central Europe. They are known by different names in different countries and they speak different languages but they are all one as regards their origin.” अर्थात् मैंने 1967 से पहले भारत की यात्रा करने से पहले इतिहास के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया और पाया कि जाट भारत से मध्य एशिया और मध्य यूरोप तक रहते हैं वे अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं और वे भाषाएं भी अलग बोलते हैं । लेकिन उन सभी का निकास एक ही है ।इसलिए जाट कौम एक ग्लोबल नस्ल है ।
72.     इतिहासकार डॉ० सुखीराम रावत (पलवल) - राजा गज ने गजनी के पास वर्तमान में अफगानिस्तान में बामियान के पास बुद्ध का विश्वप्रसिद्ध स्तूप बनवाया जिसे तालिबानियों ने सन् 2001 में संसार के सभी देशों की परवाह न करते हुए डाइनामाइट से उड़वा दिया ।
73.     इतिहासकार महीपाल आर्य (मतलौडा) - चित्तौड़, उदयपुर, नेपाल तथा महाराष्ट्र में गहलौत जाटों का राज था । बप्पारावल, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी तथा नेपाल के राणावंश नरेश सभी जाट योद्धा थे ।
74.      चौ० ओमप्रकाश पत्रकार (रोहतक) - मकौड़ा, घोड़ा और जठोड़ा पकड़ने पर कभी छोड़ते नहीं ।
75.      चौ० ईश्वरसिंह गहलोत (विख्यात जाट गायक) - आज भी काबुल चिल्ला रहा है, बंद करो फाटक रणजीत आ रहा है ।
76.      पंजाब केसरी पत्र ने अपने धारावाहिक सम्पादकीय दिनांक 25.09.2002 को झूठा इतिहास - झूठे लोग में लिखा - जाटों का इतिहास देख लें ! बड़ा ही गौरवपूर्ण इतिहास है ! इतना गौरवपूर्ण कि वैसा इतिहास खोजना मुश्किल हो जाए । इतिहासकारों ने इसे इतना तरोड़-मरोड़ कर लिखा है कि जिसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है । क्या यह सब महज इत्तिफाक है ?” (यह इतिफाक नहीं था, जाटों के इतिहास के साथ इसलिए हुआ कि पहले जाट बौद्धधर्मी थे और भारत का ब्राह्मणवाद बौद्ध धर्म का दुश्मन रहा जो स्वयं इतिहासकार थे, इसलिए ऐसा करना ही था । क्योंकि यदि भारत का सच्चा इतिहास सामने आयेगा तो ऐसे लोगों का गर्व-खर्व होना निश्चित है - लेखक) ।
77.     बी.बी.सी. लंदन (जयपुर संवाददाता) जाट जब अपने असली रूप में आ जाये तो वह हिमालय को भी चीर सकता है । हिन्दमहासागर को भी पार कर सकता है । थार के रेगिस्तान में बसे करोड़ों धरतीपुत्रों ने रैली को रैला बनाकर हिन्दुस्तान की सत्ता को थर्रा दिया था और आज 20 अक्तूबर 1999 को राजस्थान सरकार को जाटों को ओ. बी. सी. का आरक्षण देना ही पड़ा ।” (क्या शेष भारत के जाट, जाट नहीं हैं ? रोजाना रैलियों में दौड़ते भागते रहते हैं अपने हक के लिए (आरक्षण के लिए) नहीं लड़ सकते हैं ? - लेखक)

जाट इतिहास कोई भंगेड़ियों, भगोड़ों व भाड़े का इतिहास नहीं, यह सच्चे वीरों का इतिहास है।इन टिप्पणियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जाट जाति का चरित्र कैसा रहा है तथा यह कितनी महान् जाति रही । इसलिए गर्व से कहो हम जाट हैं ।